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400 साल पुराना ये मंदिर! यहां जाने से पहले नवविवाहितों को करना पड़ता है ये अनोखा अनुष्ठान

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Junagadh: रागतिया बापा मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं और सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक है. यहां जैन समुदाय के लिए खास अनुष्ठान की परंपरा है और नवविवाहित जोड़ों के लिए दर्शन का व…और पढ़ें

400 साल पुराना ये मंदिर! यहां जाने से पहले नवविवाहितों को करना पड़ता है ये...

जूनागढ़ मंदिर

जूनागढ़ जिले के वंथली के पास स्थित रागतिया बापा मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द्र और सदियों पुरानी परंपराओं का सजीव उदाहरण भी है. यह मंदिर वासा वानिया समुदाय के कुलदेवता के रूप में प्रतिष्ठित है और इसकी स्थापना को 400 वर्षों से अधिक समय हो चुका है. इस ऐतिहासिक मंदिर से कई रोचक लोककथाएं जुड़ी हुई हैं, जिन्हें मंदिर के पुजारी माधवजीभाई ने साझा किया. वे पिछले 35 वर्षों से यहां सेवा और पूजा कर रहे हैं.

रागतिया बापा और पीर बापा की मित्रता
मंदिर से जुड़ी एक लोकप्रिय लोककथा के अनुसार, रागतिया बापा और पीर बापा घनिष्ठ मित्र थे. इस कथा को पुजारी माधवजीभाई ने विस्तार से समझाया. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में सभी जातियों और पंथों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ आते हैं. हालांकि, वासा वानिया समुदाय विशेष रूप से रागतिया बापा को अपना कुलदेवता मानता है.

जैन समुदाय पर विशेष कर और अनुष्ठान
इस मंदिर की सबसे अनूठी परंपराओं में से एक यह है कि जैन समुदाय को मंदिर में सीधे प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती, जब तक कि वे एक विशेष अनुष्ठान ‘निवेद (उजेनी)’ न कर लें. यह अनुष्ठान मंदिर के पास बहने वाली ओजत नदी को पार करके किया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान उड़द की दाल, खिचड़ी और रोटी का प्रसाद तैयार कर मंदिर में चढ़ाया जाता है. इसके बाद भी, जैन समुदाय के लोग केवल 60 फीट की दूरी से ही मंदिर के दर्शन कर सकते हैं.

नवविवाहितों के लिए विशेष महत्व
वंथली और उसके आसपास के क्षेत्रों में यह मान्यता है कि नवविवाहित जोड़ों को अपने ससुराल जाने से पहले रागतिया बापा के दर्शन अवश्य करने चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इस परंपरा को न निभाने से वैवाहिक जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं. यह मान्यता मंदिर की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा बन चुकी है और आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है.

सांप्रदायिक एकता का जीवंत उदाहरण
रागतिया बापा मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक है. मंदिर परिसर में एक दरगाह भी स्थित है, जो यह दर्शाती है कि यह स्थल केवल एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी आस्थाओं को समान रूप से सम्मान देता है. वर्षों से यहां आने वाले भक्तों के लिए यह स्थान सौहार्द्र और भाईचारे की मिसाल बना हुआ है.

मंदिर की परंपराओं का संरक्षण
पुजारी माधवजीभाई, जो पिछले 35 वर्षों से इस मंदिर की देखभाल कर रहे हैं, मानते हैं कि इन प्राचीन परंपराओं और लोककथाओं को संरक्षित रखना बेहद जरूरी है. वे यहां आने वाले प्रत्येक भक्त को मंदिर के इतिहास और उसकी विशेष परंपराओं के बारे में बताते हैं, ताकि यह विरासत आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रहे.

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