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Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि में कथक भी है शक्ति साधना का प्रतीक, कैसे हुई इस नृत्य शैली की उत्पत्ति, जानें इसका धार्मिक महत्व

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Chaitra Navratri 2025 : कथक नृत्य और धर्म एक-दूसरे से इतने गहरे जुड़े हुए हैं कि इन्हें अलग करके देखना कठिन है. कथक सिर्फ एक शारीरिक कला नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना भी है, जो धर्म की भावना को जीवंत करता है. यह नृत्य न सिर्फ धार्मिक कथाओं को प्रस्तुत करता है, बल्कि नर्तक के अंतर्मन, भक्ति और आध्यात्मिक अनुशासन को भी रिफ्लेक्ट करता है. कथक सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान, ध्यान और ईश्वर की भक्ति का रूप है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रही हैं कथक नृत्यांगना कृति बाजपेयी.

कथक, सनातन धर्म और नवरात्रि की पूजा: नारी शक्ति का अद्भुत संगम
जब एक महिला कथक का अभ्यास करती है, तो वह सिर्फ नृत्य नहीं करती, बल्कि अपने भीतर निहित शक्ति, सौंदर्य और भक्ति को अभिव्यक्त करती है. इसी तरह, नवरात्रिि का पर्व देवी शक्ति की उपासना का समय होता है, जहां नारीत्व के अलग-अलग रूपों को पूजा जाता है. कथक, सनातन धर्म और नवरात्रि का यह त्रिकोण, एक स्त्री को अपनी आध्यात्मिकता, परंपरा और नृत्य साधना से जोड़ने का सशक्त माध्यम है.

कथक और सनातन धर्म
कथक नृत्य की उत्पत्ति प्राचीन मंदिरों से हुई थी, जहां इसे भगवान कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की लीलाओं को दर्शाने के लिए किया जाता था. यह नृत्य न सिर्फ मनोरंजन का माध्यम था, बल्कि भक्तिभाव से युक्त एक आध्यात्मिक साधना भी था. कथक के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग में धर्म का भाव समाहित है-पैरों की थाप, भाव-भंगिमाएं, हस्त-मुद्राएं और तांडव व लास्य का समन्वय.

सनातन धर्म में नृत्य को ‘नटराज की लीला’ कहा गया है. शिव तांडव और रासलीला जैसे नृत्य इसी सिद्धांत को पुष्ट करते हैं. कथक में विशेष रूप से भगवान कृष्ण, राधा, राम और शिव की कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं, जिससे यह सीधे सनातन परंपरा से जुड़ जाता है.

नवरात्रि और नारी शक्ति का जागरण
नवरात्रि देवी दुर्गा की उपासना का पर्व है, जो नारी शक्ति के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करता है. यह पर्व स्त्री के भीतर छिपी मृदुता और प्रचंडता, प्रेम और युद्ध, ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है. इन नौ दिनों में एक महिला सिर्फ देवी की पूजा ही नहीं करती, बल्कि अपने भीतर की ऊर्जा को भी जाग्रत करती है.

कथक नृत्य भी एक महिला को इसी ऊर्जा से जोड़ता है. जब वह घुंघरू बांधकर थिरकती है, तब उसकी थाप किसी देवी के डमरू की ध्वनि समान लगती है. जब वह भगवान की कथा को अपने भावों से दर्शाती है, तब वह स्वयं देवी का रूप धारण कर लेती है. यह नृत्य उसे अपने शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने में मदद करता है, जो योग और ध्यान के समान ही प्रभावी है.

कथक और नवरात्रि: आध्यात्मिक समर्पण का संगम
नवरात्रि के दौरान कथक नृत्य को एक विशेष साधना के रूप में देखा जा सकता है. यह ध्यान, भक्ति और साधना का रूप है. नवरात्रि, शिवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे पर्वों पर कथक विशेष रूप से देवी और भगवान की महिमा का गुणगान करने का माध्यम बनता है. देवी दुर्गा, सरस्वती, काली और राधा-कृष्ण पर आधारित कथक प्रस्तुतियां स्त्री शक्ति, प्रेम और भक्ति का प्रतीक होती हैं. कई कथक नर्तक इस दौरान विशेष रूप से देवी स्तुतियों पर आधारित नृत्य प्रस्तुत करते हैं, जैसे—
•“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता”
•“अष्टभुजा धारिणी”
•“महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम्”

इन नृत्यों में देवी के अलग-अलग रूपों की शक्ति और स्त्रीत्व की महिमा का प्रदर्शन होता है.

नारी, कथक और सनातन धर्म: एक सशक्त परंपरा
आज की आधुनिक महिला, जो अपनी जड़ों से जुड़ी रहकर भी आगे बढ़ना चाहती है, उसके लिए कथक, सनातन धर्म और नवरात्रि एक मार्गदर्शक की तरह हैं. नवरात्रि में व्रत, भजन और पूजन के साथ यदि कथक नृत्य को भी अपनाया जाए, तो यह एक महिला को आध्यात्मिक बल, आत्म-अनुशासन और मानसिक संतुलन प्रदान कर सकता है.

1. कथक की उत्पत्ति और धार्मिक आधार
कथक की जड़ें प्राचीन भारतीय मंदिरों में हैं, जहां इसे भगवान की लीला को प्रस्तुत करने के लिए अपनाया गया था. विशेष रूप से, कथक के प्रारंभिक रूपों में मंदिरों में भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम गाथाएं, शिव का तांडव, रामायण और महाभारत की कहानियां प्रस्तुत की जाती थीं. यह नृत्य न सिर्फ मनोरंजन, बल्कि धार्मिक भक्ति का एक तरीका था.

2. कथक और आध्यात्मिक अनुशासन
सनातन धर्म में कला को ध्यान और योग की तरह एक साधना माना जाता है. कथक भी सिर्फ शारीरिक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि एक साधक की तपस्या है. इसमें शामिल तत्व जैसे-
•भाव : कथा को सजीव करने के लिए
•हस्त मुद्राएं : अलग-अलग देवी-देवताओं की अभिव्यक्ति के लिए
•ताल और लय : संतुलन और अनुशासन के प्रतीक
•चक्रधार : ब्रह्मांडीय चक्र और अनंत ऊर्जा का प्रतीक

यह सभी तत्व धार्मिक प्रतीकों से भरे होते हैं और एक नर्तक के लिए यह ध्यान व योग का रूप धारण कर लेते हैं.

3. कथक में धार्मिक कथाएं और देवत्व
कथक नृत्य को “हरिकीर्तन” का एक रूप भी माना जाता है. इसमें अलग-अलग धर्मग्रंथों और पुराणों की कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं, जैसे—
•भगवान कृष्ण की लीलाएं (रासलीला, माखन चोरी, गोवर्धन लीला)
•भगवान शिव का तांडव (शिव शक्ति का स्वरूप)
•रामायण और महाभारत के प्रसंग

इन प्रस्तुतियों के माध्यम से कथक एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में उभरता है.

4. कथक और मंदिर संस्कृति
प्राचीन काल में कथक मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा के लिए किया जाता था. नर्तक मंदिरों में स्तुति गान, नृत्य और भजन के रूप में अपनी साधना को व्यक्त करते थे. कालांतर में, यह नृत्य दरबारों में मनोरंजन का साधन बना, लेकिन इसकी मूल धार्मिक आत्मा आज भी जीवित है.

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