रमा एकादशी का व्रत 28 अक्टूबर सोमवार को है. इस दिन ब्रह्म और इंद्र योग में रमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. हर साल कार्तिक कृष्ण एकादशी तिथि को रमा एकादशी का व्रत होता है. यह दिवाली से 4 या 5 दिन पहले होता है. इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा विधि विधान से करते हैं, उनकी कृपा से सभी प्रकार के पाप मिट जाते हैं और जीवन के अंत में उनके श्रीचरणों में स्थान मिलता है. पूजा के समय रमा एकादशी व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए या पढ़नी चाहिए. जो रमा एकादशी की व्रत कथा सुनता है, वह भी पाप मुक्त हो जाता है. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं रमा एकादशी की व्रत कथा, मुहूर्त और पारण समय के बारे में.
रमा एकादशी व्रत कथा
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कार्तिक कृष्ण एकादशी व्रत की महत्ता और विधि बताने का निवेदन किया. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि यह एकादशी रमा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है. जाने या अनजाने में जो व्यक्ति पाप किए होते हैं, उनको यह व्रत करना चाहिए. विष्णु कृपा से वे पाप मुक्त हो सकते हैं और मोक्ष के अधिकारी बन सकते हैं. इसकी कथा कुछ इस प्रकार से है-
एक नगर में राजा मुचुकुंद का शासन था. वह पूजा पाठ, दान पुण्य करता था. उसकी एक बेटी थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. उसने राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से अपनी बेटी का विवाह कर दिया. शोभन एक दिन ससुराल आया, उस समय रमा एकादशी का व्रत आने वाला था. मुचुकुंद के राज्य में सभी प्रजा एकादशी व्रत रखती और उस दिन कोई भोजन नहीं करता. चंद्रभागा शोभन को देखकर चिंता में पड़ गई क्योंकि उसका पति दुर्बल था और बिना भोजन के नहीं रह सकता था.
रमा एकादशी से एक दिन पहले ही राजा ने घोषणा करा दी कि एकादशी पर कोई भोजन नहीं करेगा. यह बात जानकर शोभन चिंतित हो गया. उसने चंद्रभागा से कहा कि वह बिना भोजन के कैसे जीवित रहेगा? उसके तो प्राण निकल जाएंगे. रमा एकादशी के दिन का कोई उपाय बताओ. इस पर उसकी पत्नी ने कहा कि आप कहीं और चले जाएं. इस पर शोभन ने कहा कि वह कहीं नहीं जाएगा, यहीं रहेगा.
रमा एकादशी के दिन शोभन ने भी व्रत रख लिया. उस दिन सूर्य के ढलते ही वह भूख से तड़प उठा. एकादशी का रात्रि जागरण उसके लिए असहनीय हो गया. अगले दिन सुबह होते-होते उसके निकल गए. तब राजा ने अपने दमाद का विधि विधान से अंतिम संस्कार करा दिया. चंद्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी. रमा एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक एक सुंदर नगर प्राप्त हुआ. वह वहां पर सुख पूर्वक रहने लगा.
राजा मुचुकुंद के राज्य का एक ब्राह्मण सोम शर्मा शोभन के नगर देवपुर में पहुंचा. उसने शोभन को देखकर पहचान लिया कि वह चंद्रभागा का पति है. उसने शोभन को बताया कि उसकी पत्नी चंद्रभागा और ससुर मुचुकुंद सब सुखी हैं. लेकिन आपको इतना सुंदर और समृद्धि राज्य कैसे प्राप्त हुआ.
शोभन ने सोम शर्मा को रमा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव के बारे में बताया. उसने कहा कि उसने रमा एकादशी का व्रत बिना किसी श्रद्धा के किया था, इसलिए यह राज्य, सुख, वैभव अस्थिर है. उसने कहा कि आप चंद्रभागा को इस बारे में बताना, तब यह स्थिर हो जाएगा. वहां से वापस आने के बाद उस ब्राह्मण ने चंद्रभागा को पूरी बात बताई.
इस पर चंद्रभागा ने उस ब्राह्मण को शोभन के पास ले जाने को कहा. तब सोम शर्मा ने चंद्रभागा को अपने साथ लेकर मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के पास गए. उस ऋषि ने चंद्रभागा का अभिषेक किया, जिसके प्रभाव से वह दिव्य शरीर वाली हो गई और उसे दिव्य गति प्राप्त हुई. फिर वह अपने पति शोभन से मिली.
वह शोभन की बाईं ओर बैठ गई. उसने अपने पति को एकादशी व्रत का पुण्य फल प्रदान कर दिया. इससे शोभन का राज्य प्रलय काल के अंत तक के लिए स्थिर हो गया. इसके बाद चंद्रभागा अपने पति शोभन के साथ से सुखपूर्वक रहने लगी. जो भी व्यक्ति रमा एकादशी का व्रत करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.
रमा एकादशी 2024 मुहूर्त और पारण समय
कार्तिक कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ: 27 अक्टूबर, रविवार, सुबह 5:23 बजे से
कार्तिक कृष्ण एकादशी तिथि का समापन: 28 अक्टूबर, सोमवार, सुबह 10:31 बजे पर
पूजा मुहूर्त: सुबह 06:30 बजे से
ब्रह्म योग: सुबह में 6:48 बजे तक
इंद्र योग: सुबह 6:48 बजे से पूर्ण रात्रि तक
रमा एकादशी पारण समय: 29 अक्टूबर, मंगलवार, सुबह 6:31 बजे से 8:44 बजे तक
FIRST PUBLISHED : October 26, 2024, 07:42 IST
