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मंदिर के पुजारी महेश भट्ट बताते है कि, यह प्रतिमा छः भुजाओं के साथ नृत्य मुद्रा में स्थापित है और इसकी ऊंचाई साढ़े 11 फीट है. इसे एक ही पाषाण शिला पर तराशा गया है. पुरातत्वविदों का कहना है कि नृत्य मुद्रा में इ…और पढ़ें
देवों की नगरी देवगढ़ चोली गांव का यह मंदिर श्री षष्टानंद सिद्धेश्वर गजानन मंदिर के नाम से जाना जाता है. पुरातत्व विभाग इसे परमार काल का मानता है और इसकी स्थापना लगभग 9वीं शताब्दी में बताई जाती है. वहीं ग्रामीणों का विश्वास है कि मंदिर का इतिहास पांडव काल से जुड़ा हुआ है. पांडवों में इसकी स्थापना की है.
मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति है. मंदिर के पुजारी महेश भट्ट बताते हैं कि यह प्रतिमा छः भुजाओं के साथ नृत्य मुद्रा में स्थापित है और इसकी ऊंचाई साढ़े 11 फीट है. इसे एक ही पाषाण शिला पर तराशा गया है. पुरातत्वविदों का कहना है कि नृत्य मुद्रा में इतनी बड़ी प्रतिमा पूरे देश में और कहीं नहीं है. वहीं, किंवदंती है कि, इस प्रतिमा का निर्माण छह माह की रात्रि में हुआ है.
गर्भगृह का दरवाजा महज 4 फिट का
मंदिर का गर्भगृह अपने आप में अद्भुत है. इसका दरवाजा केवल 4 फीट ऊंचा और 2 फीट चौड़ा है, लेकिन इसके भीतर इतनी विशालकाय प्रतिमा खड़ी है. यहां आने वाले हर भक्त में मन यह सवाल उठाया है कि आखिर मूर्ति अंदर किसे गई होगी? पुजारी बताते हैं कि यह प्रतिमा कहीं से लाई नहीं गई बल्कि उसी स्थान पर तराशी गई थी और स्थापना की गई. उसके बाद गर्भगृह का निर्माण किया गया, जबकि अन्य जगहों पर पहले मंदिर का निर्माण होता है और फिर मूर्ति की स्थापना होती है.
वहीं, मंदिर से जुड़े किशोर ठाकुर बताते है कि, मंदिर में गणेश उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. नौ दिनों तक भगवान गणेश का विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना होती है. अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी पर शोभायात्रा निकलती है, जिसमें दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु शामिल होते है. प्रतिमा ऊंची होने की वजह से भगवान के श्रृंगार और वस्त्र बदलने के लिए सीढ़ी का सहारा लेना पड़ता है.
गांव में 284 से ज्यादा मंदिर
बता दें कि, चोली गांव को देवगढ़ के नाम से भी जाना जाता है. यहां लगभग 284 छोटे-बड़े मंदिर मौजूद हैं और उन्हीं में सबसे अनोखा है यह गणेश मंदिर. वर्तमान में पुजारी परिवार की सातवीं पीढ़ी इस मंदिर की सेवा कर रही है. चोली का यह प्राचीन मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी गौरवपूर्ण प्रतीक है. केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई बड़े नेता यहां दर्शन करने आते हैं.