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Karthigai Deepam 2025: कार्तिगाई दीपम आज, इन दो पौराणिक कथाओं से जानें क्यों मनाया जाता है यह तमिल उत्सव

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Karthigai Deepam 2025: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कार्तिगाई दीपम का पर्व मनाया जाता है. यह एक तरह का तमिल संस्कृति में दीपावली की तरह है. इस दिन भगवान शंकर के पुत्र भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की पूजा की जाती है. मान्यता है भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करने स जीवन में सुख-शांति आती है.

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मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि दिन गुरुवार को मासिक कार्तिगाई है. यह पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका और तमिल बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव का अग्नि तत्व विशेष रूप से जाग्रत रहता है. भगवान शिव ने अनंत ज्योति स्तंभ (अरुणाचल दीप) के रूप में प्रकट होकर यह बताया कि उनका कोई आदि और अंत नहीं है. यह दिव्य ज्योति ही कार्तिगाई दीपम का प्रतीक है. इस दिन घरों, मंदिरों और पर्वतों पर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं, यह आत्मज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है. आइए जानते हैं कार्तिगाई दीपम का महत्व…

ब्रह्माजी जी की केतकी फूल से झूठी गवाही
शिव पुराण, कूर्म पुराण और स्कंद पुराण में प्रचलित एक कथा के अनुसार, सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था. विवाद धीरे-धीरे बढ़ता गया, तब भगवान शिव अनंत ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए. आकाशवाणी हुई, जो इसका आदि या अंत ढूंढ लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ कहलाएगा. इसके बाद भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पाताल लोक जाना शुरू किया, तो ब्रह्मा जी हंस रूप में आकाश की ऊंचाइयों में उड़ते गए, जिसके बाद कहा जाता है कि युग बीत गए, लेकिन दोनों इस कार्य में असफल रहे. आखिर में विष्णु भगवान सत्य स्वीकार कर लौट आए और ब्रह्माजी ने केतकी फूल से झूठी गवाही दी कि उन्होंने अंत देख लिया.

शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक
शिवजी ने क्रोधित होकर प्रचंड रूप धारण किया, जिससे पूरी धरती में हाहाकार मच गया, जिसके बाद देवताओं द्वारा क्षमा याचना करने पर यह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हो गई. कहते हैं यहीं से शिवरात्रि का त्योहार मनाना भी आरंभ हुआ. इस कथा से कार्तिगाई दीपम दीपकों का महत्व जुड़ा, जो शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक हैं.

तमिल संस्कृति में दीपावली की तरह
एक अन्य कथा और भी प्रचलित है, जो भगवान मुरुगन से जुड़ी है. इस प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान कार्तिकेय को छह कृतिका नक्षत्रों की देवियों ने छह अलग-अलग शिशुओं के रूप में पाला-पोसा है और देवी पार्वती ने इन छह रूपों को एक सुंदर बालक में बदल दिया. यह बालक ही मुरुगन बने, जो शक्ति और विजय के देवता हैं. कहते हैं कि इसके बाद से ही तमिल समुदाय में कार्तिगाई उत्सव मनाया जाने लगा. इस दिन दीप जलाकर मुरुगन की पूजा की जाती है, जो जीवन की बाधाओं को दूर करने वाली बताई जाती है. तमिल संस्कृति में यह पर्व दीपावली की तरह है. मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण होता है.

मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें

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