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Karwa Chauth पर क्यों जरूरी होता है करवा, और मिट्टी का ही करवा क्यों लेती हैं महिलाएं?

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खंडवा: करवा चौथ पर अक्सर महिलाएं मिट्टी का करवा ही लेती हैं. हर साल नया करवा महिलाओं को लेना पड़ता है और हर साल करवे की डिमांड भी काफी रहती है. इस खबर के माध्यम से हम जानेंगे कि आखिर इसका कारण क्या है और महिलाएं स्टील, तांबे या किसी दूसरी धातु का करवा क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकतीं. सबसे पहले जानते हैं कि करवा चौथ क्या होता है. दरअसल, पतिव्रता महिलाएं करवा चौथ के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन भोजन और जल पीने की मनाही होती है. इसलिए इस दिन तब तक जल ग्रहण नहीं किया जाता, जब तक कि महिलाएं चांद को देखकर उसकी पूजा न कर लें.

मां सीता का कलश का महत्व
प्रमिला शर्मा ने जानकारी देते हुए Bharat.one को बताया कि मां सीता का जन्म कलश के रूप में इस पृथ्वी से हुआ था. पहले समय में हमारे घर भी मिट्टी के ही होते थे और हमारी जमीन भी मिट्टी से ही बनी थी. मां सीता ने मिट्टी का कलश बनाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए अखंड सुहाग की कामना की थी. उन्होंने चंद्रमा को मिट्टी के कलश से अर्घ्य दिया, क्योंकि मिट्टी का कलश कभी भी खराब नहीं होता. अखंड सुहाग और समृद्धि देने वाली मां भगवती, जो कि मिट्टी भगवती हैं, हमारी पृथ्वी से ही हमें सबकुछ प्राप्त होता है.

पंडित कैलाश पीयूष शर्मा की राय
पंडित कैलाश पीयूष शर्मा के मुताबिक करवा चौथ सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है. करवे का अर्थ मिट्टी के पात्र से है और चौथ का मतलब चतुर्थी होता है. चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश और मां पार्वती की पूजा की जाती है, और करवे से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. मिट्टी के करवे की मान्यता है कि वह कभी समाप्त नहीं होता, वह हमेशा विद्यमान रहता है. आपको बता दें कि यह व्रत सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है. उससे पहले कुछ भी खा-पी सकते हैं, लेकिन उसके बाद जब तक रात में चंद्रोदय नहीं हो जाता, तब तक जल भी ग्रहण नहीं किया जाता. अगर कोई स्वास्थ्य समस्या हो तो जल पी सकते हैं. चंद्र दर्शन के बाद ही इस व्रत का विधि-विधान से पारण करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार, केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो, वही स्त्रियां यह व्रत रख सकती हैं. पत्नी के अस्वस्थ होने पर पति भी यह व्रत रख सकते हैं.

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