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kuber Temple Gujarat: कुबेर भंडारी मंदिर वडोदरा के कर्नाली गांव में नर्मदा तट पर स्थित है, जिसका निर्माण भगवान शिव ने किया था. धनतेरस और दिवाली पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
kuber Temple Gujarat: धनतेरस को देवी लक्ष्मी और देव कुबेर को समर्पित दिन माना जाता है. लक्ष्मी धन की देवी हैं और कुबेर नौ निधियों के स्वामी माने जाते हैं. यह एक सुस्थापित मान्यता है कि धनतेरस के पावन अवसर पर देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की आराधना अत्यंत मंगलकारी होती है. यह भी माना जाता है कि यदि कोई भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है तो उसे आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
किस जगह स्थित है मंदिर
यह प्रसिद्ध कुबेर भंडारी मंदिर गुजरात राज्य के वडोदरा जिले के कर्नाली गांव में स्थित है. इसकी महत्ता इतनी अधिक है कि धनतेरस और दीपावली के शुभ अवसरों पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. धनवान बनने की कामना लिए भारत के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं. अधिकांश भक्त यह प्रार्थना करते हैं कि उनका निवास स्थान सदैव सुख और समृद्धि से परिपूर्ण रहे. एक अन्य दृढ़ विश्वास यह भी है कि जो भी भक्त धनतेरस या दिवाली के दिन इस मंदिर से थोड़ी मिट्टी लेकर अपनी तिजोरी में रखते हैं, उनके घर में देवी लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाता है.
इस कुबेर भंडारी मंदिर का निर्माण किसी आम आदमी नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव ने किया था.
2500 साल पुराना इतिहास
कुबेर भंडारी मंदिर का इतिहास लगभग 2500 साल पुराना माना जाता है. किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण किसी सामान्य मनुष्य द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शिव द्वारा किया गया था. यह मंदिर नर्मदा नदी के मनोरम तट पर स्थित है, जिसकी वजह से इसका स्थान अत्यंत मनोहारी और रमणीय लगता है. यहां आने वाले भक्तों को एक विशेष प्रकार की आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है. दिवाली के पावन अवसर पर इस पूरे मंदिर को दीपों की रोशनी से जगमगा दिया जाता है. भौगोलिक दृष्टि से कुबेर भंडारी मंदिर वडोदरा शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
मंदिर के निर्माण की कथा
इस मंदिर के उद्भव से जुड़ी एक कथा अत्यंत प्रचलित है. ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण हेतु पैदल यात्रा पर निकले थे. मार्ग में माता पार्वती को तीव्र भूख लगी और उन्होंने भगवान शिव से भोजन तथा जल की व्यवस्था करने का अनुरोध किया. भोजन की तलाश में भटकने के बावजूद जब भगवान शिव को कहीं भोजन प्राप्त नहीं हुआ तब वे नर्मदा नदी के तट पर आकर रुक गए. इसके उपरांत इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण हुआ और कालांतर में यह मंदिर ‘कुबेर’ अर्थात भोजन या धन प्रदान करने वाले मंदिर के रूप में ख्यात हो गया.
भगवान कुबेर का परिचय
पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान कुबेर लंका के राजा रावण के सौतेले भाई थे, जिनके पिता महर्षि विश्रवा थे. ऐसा माना जाता है कि उन्हें देवताओं के धन का कोषाध्यक्ष (खजांची) नियुक्त किया गया था. इसके अतिरिक्त वे उत्तर दिशा के दिक्पाल (दिशाओं के रक्षक) और संपूर्ण विश्व के लोकपालों में से एक भी कहलाते हैं. यही कारण है कि वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार उत्तर दिशा को भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी की दिशा माना जाता है. वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार भगवान कुबेर की प्रतिमा को घर में उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना अत्यंत शुभ होता है और उनकी प्रतिमा का मुख सदैव उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए.
पूजा करने का कारण
धनतेरस के पावन पर्व पर भगवान कुबेर को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस शुभ अवसर पर देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कुबेर देव का पूजन करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है. एक मान्यता के अनुसार वट वृक्ष (बरगद का पेड़) में भगवान कुबेर का वास होता है. इसीलिए, धनतेरस के दिन वट वृक्ष को जल अर्पित करना और उसकी विधिवत पूजा करना भी अत्यधिक शुभ फलदायी माना जाता है. कुबेर देव के भोग में पीले रंग की वस्तुएं (खाद्य पदार्थ) उनके समक्ष अर्पित करना बहुत कल्याणकारी कहा गया है.