निर्मल कुमार राजपूत /मथुरा : वृंदावन के यमुना के किनारे महालक्ष्मी जी तप अवस्था में आज भी बैठी हुई हैं. जहां लक्ष्मी जी स्वयं भगवान श्री कृष्ण की तपस्या में लीन हैं. महालक्ष्मी तपस्थली के रूप में विख्यात बेलवन नामक इस स्थल पर दीपावली के दिन विशेष पूजा का महत्व है. दूर दराज से हजारों लोग यहां आकर विधि विधान से लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.यहां पर देश के कोने-कोने से हजारों भक्त वृंदावन से पैदल चलते हुए मां लक्ष्मी जी के इसमंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.
लक्ष्मी जी स्वयं भगवान श्री कृष्ण की तपस्या में लीन
भगवान श्री कृष्ण की लीला भूमि ब्रजमंडल में आज भी हजारों वर्ष पुराने ऐसे स्थल हैं, जो भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं. लक्ष्मी जी की तपस्थली बेलवन भी कृष्ण की महा रासलीला से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि राधा कृष्ण के महारास में भाग लेने के लिए बैकुंठ से चलकर स्वयं लक्ष्मी जी यहां आईं थी. मगर उन्हें महारास तो दूर वृन्दावन में ही प्रवेश नहीं मिला. इसी से व्याकुल होकर लक्ष्मी जी वृन्दावन के पूर्वी छोर पर यमुना के किनारे तपस्या करने लगी. बेलवन स्थित महालक्ष्मी के मंदिर के सेवायत पुजारी राजेंद्र प्रसाद ने Local18 को मान्यता के बारे में बताते हुए कहा कि आज भी लक्ष्मी जी हाथ जोड़कर भगवान श्री राधा कृष्ण की आराधना में लीन हैं. समूचे ब्रज मंडल में लक्ष्मी जी का एकमात्र यही प्राचीन मंदिर है. मंदिर में लक्ष्मी जी हाथ जोड़े विराजमान हैं. बराबर में लड्डू गोपाल बिराजमान हैं. उन्होंने कहा कि मान्यता है कि इस स्थान पर जो भी भक्त लक्ष्मी जी की सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं लक्ष्मी जी पूर्ण करती हैं. पुजारी ने यह भी बताया कि इस मंदिर का उल्लेख श्रीमद् भागवत पुराण के दसवें स्कंद में है.
तप मुद्रा में विराजमान बेलवन के महालक्ष्मी मंदिर
इस मंदिर में हर गुरुवार को भक्तों की खासी भीड़ होती है. इस खास संयोग के चलते यहां पर देश के कोने-कोने से आए हजारों भक्त वृंदावन से पैदल चलते हुए मां लक्ष्मी जी के इस बेलवन स्थित मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंच रहे हैं. पूजा करने आए भक्तों ने यहां की महिमा बताई और कहा कि दीपावली के दिन इस स्थान पर पूजा करने का खास महत्व है. कहा जाता है कि यहां साढ़े पांच हज़ार साल से मां लक्ष्मी तप मुद्रा में बैठी हैं. लक्ष्मी जी को अपने ऐश्वर्य और धन पर बहुत ही घमंड था. श्री कृष्ण ने उनके घमंड को तोड़ने के लिए उन्हें महारास से बाहर रखा.
5500 वर्ष पुराना है लक्ष्मी जी के मंदिर
Local18 से बात करते हुए पुजारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि मंदिर के ऊपर एक कल्पवृक्ष है और वहीं बैठकर माता लक्ष्मी तप करती हैं. यह वृक्ष भी साढ़े 5 हज़ार साल पुराना है. वृक्ष के एक तरफ मां लक्ष्मी जी के चरण बने हुए हैं. जो भी सच्चे मन से इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना करता है. महालक्ष्मी उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
FIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 14:47 IST
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