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Pashupatinath Temple: पशुपतिनाथ मंदिर की उत्पत्ति के पीछे का ये रहस्य कर देगा हैरान, स्कंद पुराण में है इसका विचित्र वर्णन

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Pashupatinath Mandir: नेपाल की सुंदरता हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है. यहां के बर्फ से ढके पहाड़, हरे-भरे जंगल, शांत घाटियां इसे एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बनाते हैं. लेकिन इसके अलावा, नेपाल में कई ऐतिहासिक और ध…और पढ़ें

पशुपतिनाथ मंदिर की उत्पत्ति के पीछे का ये रहस्य कर देगा हैरान

पशुपतिनाथ मंदिर

हाइलाइट्स

  • पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की धार्मिक पहचान है.
  • 2015 के भूकंप में मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ.
  • मंदिर का निर्माण पारंपरिक नेपाल शैली में हुआ है.

Pashupatinath Temple: नेपाल की खूबसूरत हिमालयी वादियों में बसा काठमांडू शहर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों से समृद्ध है. इस शहर को सात यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के लिए जाना जाता है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ मंदिर. यह प्राचीन मंदिर न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि इसके साथ कई रहस्यमयी कथाएं भी जुड़ी हुई हैं. अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप ने काठमांडू शहर को हिलाकर रख दिया था, हजारों लोगों की जान चली गई, कई ऐतिहासिक धरोहरें तबाह हो गईं, लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर पर इस भूकंप का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. यह मंदिर आज भी नेपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में खड़ा है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं.

पशुपतिनाथ मंदिर की उत्पत्ति और रहस्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू (स्वतः प्रकट हुआ) है. नेपाल महात्म्य ग्रंथ के अनुसार, भगवान शिव ने एक समय कैलाश छोड़कर काठमांडू की बागमती नदी के तट पर विश्राम किया था. जब अन्य देवताओं को उनकी चिंता हुई, तो भगवान विष्णु उन्हें वापस ले जाने के लिए आए. लेकिन शिवजी ने हिरण का रूप धारण कर लिया और वहां रहने लगे. विष्णुजी ने उनके सींग पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वे टूट गए और उसी स्थान पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिसे आज मुकुलिन महादेव के रूप में जाना जाता है. इस शिवलिंग के चार चेहरे हैं, जो शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं.

एक अन्य पौराणिक कथा
एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय कुछ ग्वालों ने देखा कि उनकी गाय एक स्थान पर अपने आप दूध बहा रही है. जब उन्होंने वहां खुदाई की तो उन्हें एक शिवलिंग मिला जिसे बाद में ‘पशुपतिनाथ’ के रूप में पूजा जाने लगा. स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है और कहा जाता है कि यहां पूजा करने से मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति होती है.

2015 का भूकंप और मंदिर का अटूट अस्तित्व
2015 में नेपाल में 7.8 तीव्रता का भीषण भूकंप आया था, जिसने हजारों इमारतों को नष्ट कर दिया था. लेकिन यह रहस्य बना हुआ है कि पशुपतिनाथ मंदिर को इस भूकंप से कोई नुकसान नहीं हुआ. स्थानीय लोग इसे शिवजी की कृपा मानते हैं. मंदिर के अलावा, एक और ऐतिहासिक स्थान कुमारी घर भी इस भूकंप से अछूता रहा.

पवित्र धरोहर स्थल
नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर बागमती नदी के किनारे बना हुआ है और यहां दुनियाभर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है और इसे 1979 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया था. मंदिर का निर्माण पारंपरिक नेपाल शैली के पगोड़ा डिजाइन में किया गया है. इसके छत सोने से मढ़े हुए हैं और चारों प्रवेश द्वारों पर चांदी की परत चढ़ी हुई है. मंदिर के अंदर शिवलिंग स्थापित है, जिसे ‘पशुपतिनाथ’ यानी प्राणियों के रक्षक भगवान के रूप में पूजा जाता है.

पशुपतिनाथ मंदिर और मोक्ष की अवधारणा
पशुपतिनाथ मंदिर का एक विशेष हिस्सा है आर्य घाट, जो एक प्रमुख श्मशान स्थल है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जिसका भी यहां अंतिम संस्कार के बाद उसकी अस्थियों का विसर्जन बागमती नदी में होता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है. यही कारण है कि यहां अंतिम संस्कार के दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहते हैं.

काठमांडू सिर्फ मंदिरों और तांत्रिक साधना के लिए ही नहीं, बल्कि हिंदू और बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां पशुपतिनाथ मंदिर, बौद्धनाथ स्तूप, स्वयंभूनाथ मंदिर और कई अन्य ऐतिहासिक स्थल स्थित हैं, जो दुनिया भर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

पशुपतिनाथ मंदिर कैसे पहुंचे
भारत से पशुपतिनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा तरीका फ्लाइट से काठमांडू पहुंचना है, जहां हवाई अड्डा सिर्फ 5 किमी दूर है. दिल्ली से काठमांडू की सीधी फ्लाइट करीब 2 घंटे में पहुंच जाती है, लेकिन कभी-कभी मौसम के कारण देरी हो सकती है. ट्रेन से सीधा रास्ता नहीं है लेकिन गोरखपुर के जरिए जाया जा सकता है. सड़क मार्ग से भी दिल्ली से काठमांडू (1310 किमी) जाने में लगभग 20 घंटे लगते हैं.

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पशुपतिनाथ मंदिर की उत्पत्ति के पीछे का ये रहस्य कर देगा हैरान

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