मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है. इसके साथ ही गाय, कुत्ते और कौवे को भी भोजन कराना बहुत जरूरी है. उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज के अनुसार श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को अपने घर में आमंत्रित करने से लेकर भोजन कराकर विदा करने तक के लिए कुछ नियम बताए गए हैं. जिनका पालन करना जरूरी है.
– पितृपक्ष में यदि आप किसी ब्राह्मण को भोजन कराने जा रहे हैं तो आपको हमेशा धर्म-कर्म का पालन करने वाले योग्य ब्राह्मण को ही भोजन पर आमंत्रण करना चाहिए.
– किसी भी ब्राह्मण को भोजन के लिए आदर के साथ आमंत्रित करें और उसे इस बात को स्पष्ट कर दें कि आप उसे श्राद्ध के लिए भोज में आमंत्रित कर रहे हैं. साथ ही यह भी स्पष्ट कर लें कि वह आपके अलावा किसी और के यहां तो श्राद्ध का भोजन करने के लिए नहीं जा रहे हैं.
– पितृपक्ष में पितरों के लिए निमित्त के लिए श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय किया जाता है, इसलिए ब्राह्मण को भोजन के लिए दोपहर के लिए ही आमंत्रित करें. ब्राह्मण के लिए भोजन को पवित्रता और शुद्धता से बनाना चाहिए और उसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज प्रयोग नहीं करना चाहिए.
– पितृपक्ष के दौरान जब अपने पितरों के निमित्त किसी ब्राह्मण को बुलाकार भोजन कराते हैं तो हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि उन्हें भोजन कांसे, पीतल, चांदी या फिर पत्तल में परोसें. पितृपक्ष में ब्राह्मण को भूलकर भी लोहे यानि स्टील की थाली में भोजन कराने की भूल न करें.
– पितृपक्ष में ब्राह्मण को आदर के साथ भोजन करवाने के बाद उसे जाते समय अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दक्षिणा देकर आशीर्वाद जरूर लें. किसी भी प्रकार की जाने-अनजाने की गई भूल या फिर कमी के लिए माफी मांग लें. पितृपक्ष में ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही घर के सदस्यों को प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण करना चाहिए.