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Sadhu Ki Jata Ka Rahasya: साधु-संन्यासी क्यों रखते हैं लंबी जटाएं? जानें धार्मिक महत्व और इससे जुड़े रहस्य

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Sadhu Ki Jata Ka Rahasya: साधु-संत लंबी जटाएं धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से रखते हैं. धार्मिक रूप से, जटाएं आध्यात्मिक ऊर्जा और तपस्या से जुड़ी होती हैं. वैज्ञानिक रूप से, जटाएं मौसम से बचाव करती हैं.

साधु-संन्यासी क्यों रखते हैं लंबी जटाएं? जानें धार्मिक महत्व, इससे जुड़े रहस्य

हाइलाइट्स

  • साधु-संत लंबी जटाएं धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से रखते हैं.
  • धार्मिक रूप से, जटाएं आध्यात्मिक ऊर्जा और तपस्या से जुड़ी होती हैं.
  • वैज्ञानिक रूप से, जटाएं मौसम से बचाव करती हैं.

Tradition Of Sadhu Jata: साधु-संत अक्सर लंबी-लंबी जटाओं में देखे जाते हैं. इन जटाओं को रखने के पीछे कई धार्मिक,आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण होते हैं. ऐसे तो व्यक्ति संन्यास लेने के बाद ही साधु बनते हैं. संन्यास के बाद सभी प्रकार के क्षोभन कर्म से इंसान मुक्त होता है. क्षोभन कर्म ना करना भी एक योग की श्रेणी में आता है क्योंकि संसार की मोह माया से विरक्त होने के बाद ही साधु संन्यासी बन जाता है. विस्तार से जानते हैं कि साधु-संत अपने सिर पर लंबी जटा क्यों रखते हैं? इसके पीछे के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण को समझते हैं.

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जटा रखने के धार्मिक कारण
हिंदू धर्म में लंबे बालों को आध्यात्मिक ऊर्जा, त्याग और तपस्या से जोड़कर देखा गया है. जाप, तप और अनुष्ठान करते वक्त ब्रह्मांड की ऊर्जा का समावेश उन जटाओं में हो जाता है. भगवान भोलेनाथ भी सांसारिक मोह माया से दूर कैलाश पर लंबी जटाओं के साथ रहते थे.

साधु-संन्यासी लंबी जटाओं को रखकर प्रभु की भक्ति के मार्ग का अनुसरण करते हैं. लंबी जटाएं रखना उनके जीवन शैली का एक हिस्सा है.ग्रहस्थ जीवन में लोगों को बाल, दाढ़ी कटवा कर रहना चाहिए. साधु जीवन में क्षोभन कर्म से मुक्त रहा जाता है. वहां सिर्फ प्रभु की भक्ति का मार्ग है.

वैज्ञानिक कारण : साधु-संत सांसारिक मोह माया शेड्यूल सामाजिक जीवन छोड़कर प्राकृतिक जीवन जीते हैं, इसलिए उन्हें हर प्रकार के मौसम में रहना होता है. लम्बी जटाओं से उन्हें मौसम का लाभ मिल जाता है. गर्मी में अधिक ताप और सर्दियों में अधिक ठण्ड से भी उन जटाओं से बचाव होता है.

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जटाओं से सम्बंधित रोचक तथ्य
– साधुओं की जटाएं उनके अनुशासन का हिस्सा होती है.

-जाटव को ढूंढने के लिए साधु-संत साबुन शैंपू नहीं, राख या भभूत का इस्तेमाल करते हैं.

-भगवान भोलेनाथ को जटाधारी कहा जाता है इसलिए साधु-संत भी जटाएं रखते हैं.

-नागा साधु कभी भी बाल नहीं कटवाते हैं. उनका मानना है इससे भगवान नाराज होते हैं और उन्हें संन्यासी जीवन का फल नहीं मिलता.

-बाल कटवाना गृहस्थ जीवन का कर्म माना जाता है. वैराग्य में बाल, दाढ़ी कटवाने का कोई प्रबंध नहीं है.

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