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Sharia Rules : बैंक का ब्याज इस्लाम में हराम… तो क्या उस पैसे का दान होगा जायज? जानें क्या कहता है शरीयत?

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Sharia Rules On Bank Interest : बैंक का ब्याज यानि रिबा इस्लाम में हराम माना गया है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस्लाम में सूद (ब्याज) लेना और देना दोनों ही सख्त हराम हैं. ऐसे में कुछ लोग इसे दान करने की सलाह देते हैं लेकिन अब प्रश्न उठता है कि हराम के पैसे का दान जायज होगा.

अलीगढ़. इस्लाम में सूद या ब्याज लेना और देना दोनों ही हराम माना गया है. कुरान में इसे स्पष्ट रूप से मना किया गया है क्योंकि यह अन्य लोगों के अधिकारों का हनन करता है और समाज में असमानता बढ़ाता है. इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, रिबा (सूद) से बचना जरूरी है और धन अर्जित करने का सही तरीका व्यापार, मेहनत और वैध निवेश है. जो कोई सूद पर धन कमाता है, वह पाप के मार्ग पर चलता है. इसलिए मुसलमानों को हमेशा निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीकों से आय प्राप्त करने की सलाह दी गई है. अब ऐसे मे लोगों के ज़हन मे ये सवाल आता है कि जो लोग बैंक मे पैसा रखते हैँ उनके पैसे पर बैंक जो ब्याज़ देती है उसका क्या किया जाए.

अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन का कहना है कि बैंक खातों में मिलने वाला इंटरेस्ट पूरी तरह से सही नहीं माना जाता. उलेमाओं के इत्तेफाक के अनुसार, इस राशि का निजी फायदा नहीं उठाना चाहिए. बल्कि इसे गरीब, मिसक़ीन और सच्ची ज़रूरतमंदों को बिना सवाब की नियत से दान कर देना चाहिए. इसी तरह, ध्यान और सावधानी के साथ यह सुनिश्चित किया जाता है कि इन पैसों का व्यक्तिगत उपयोग, व्यापार या रोज़मर्रा की जरूरतों में न किया जाए.

क्या कहता है शरीयत?
अलीगढ़ के धर्मगुरु चौधरी इफराहीम हुसैन के अनुसार, इस्लाम में सूद (ब्याज) लेना और देना दोनों ही सख्त हराम हैं. बैंक खातों में जमा पैसे पर जो इंटरेस्ट बनता है, उसे उलेमाओं के इत्तेफाक से लिया जा सकता है, लेकिन इसका निजी उपयोग हर हाल में नहीं किया जा सकता. इसका मतलब है कि न तो इसे खाने-पीने में खर्च करें और न ही अपने बिज़नेस या निजी जरूरतों में लगाएं. बल्कि इस पैसे को गरीब, मिसकीन और अत्यधिक जरूरतमंदों को दे देना चाहिए, और इसे देते समय सवाब की नियत नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि यह हराम का धन है.

कैसे करें इस गुनाह से तौबा?
मौलाना इफराहीम हुसैन के अनुसार कुरान में सूद की सख्त मनाही है. उन्होंने बताया कि बैंक में मिलने वाले इंटरेस्ट (ब्याज) से निपटने का उलेमाओं का इत्तेफाक यही है कि उसे व्यक्तिगत कामों में न लगाकर समाज के कमजोर और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा देना चाहिए. इसलिए कहा जा सकता है कि बैंक का सूद लिया जा सकता है, पर उसे खाने-पीने, व्यापार या निजी खर्चों में इस्तेमाल करना हराम माना जाता है. ऐसे करने से इंसान सूद के गुनाह से बच सकता है.

मृत्‍युंजय बघेल

मीडिया फील्ड में 5 साल से अधिक समय से सक्रिय. वर्तमान में News-18 हिंदी में कार्यरत. 2020 के बिहार चुनाव से पत्रकारिता की शुरुआत की. फिर यूपी, उत्तराखंड, बिहार में रिपोर्टिंग के बाद अब डेस्क में काम करने का अनु…और पढ़ें

मीडिया फील्ड में 5 साल से अधिक समय से सक्रिय. वर्तमान में News-18 हिंदी में कार्यरत. 2020 के बिहार चुनाव से पत्रकारिता की शुरुआत की. फिर यूपी, उत्तराखंड, बिहार में रिपोर्टिंग के बाद अब डेस्क में काम करने का अनु… और पढ़ें

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बैंक का ब्याज इस्लाम में हराम… तो क्या उस पैसे का दान होगा जायज?

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