Friday, October 24, 2025
31 C
Surat

Sindoor ka Itihas: किसने लगाया था सबसे पहले सिंदूर, कैसे शुरू हुई परंपरा? यहां जानें पौराणिक मान्यताएं


Last Updated:

Saharanpur latest News: माता पार्वती ने वर्षों तक भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी. जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था.

सहारनपुर: हिंदू धर्म में सुहागन महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं, लेकिन सिंदूर भरने की परंपरा कब से शुरू हुई और सबसे पहले सिंदूर किसने लगाया था क्या आपको पता है अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल, सिंदूर हर हिंदू विवाहित महिला की पहचान है. सिंदूर को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और ये विवाहित महिला की शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है. यही वजह है कि हर हिंदू महिला विवाह के बाद मांग में सिंदूर भरती है.

क्या है पौराणिक कहानी

कई हिंदू धर्म शास्त्रों में सिंदूर लगाने के महत्व के बारे में बताया भी गया है. शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी. जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया, तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था. साथ ही उन्होंने कहा था कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी उसकी पति को सौभाग्य और लंबी आयु की प्राप्ति होगी. धार्मिक मतों के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने ही सिंदूर लगाया था और तभी से ये परंपरा चल पड़ी.

माता पार्वती से शुरू हुई थी मांग में सिंदूर भरने की प्रथा

आचार्य सोमप्रकाश शास्त्री ने Bharat.one से बात करते हुए बताया कि मांग भरने की सबसे पहले जो प्रथा शुरू हुई है वो आदिकाल से शुरू हुई है और इस प्रथा के अंतर्गत जो हमारे देवी देवता हैं उनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी आते हैं. लक्ष्मी जी और पार्वती जी अखंड सौभाग्य धारणी हैं इनका सौभाग्य अटल है.

होती है जल्दी शादी

वैसे मस्तक पर सिंदूर लगाने से विभिन्न प्रकार के दोष दूर होते हैं और जिस स्त्री कन्या का विवाह ना हो रहा हो वह अगर पार्वती मैया का गढ़ जोड़ा शिव परिवार के साथ करे तो विवाह जल्दी होता है.

माता पार्वती ने किया था घोर तपस्या

मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कल्पों तक तपस्या की थी. भगवान की शिव के गले में जितने नरमुंडों की माला है उतने जन्मों तक पार्वती माँ ने तपस्या करी है. भगवान शिव के गले में 108 नरमुंडों की माला है मां पार्वती ने 7 जन्मों तक तपस्या करी तब जाकर के राजा हिमालय के यहां पर यह उत्पन्न हुई. दक्ष के यहां पर उसके पाश्चात्य पुत्री रूप में आई और भगवान शिव ने इनको ग्रहण किया पाणिग्रहण संस्कार किया.

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homedharm

किसने लगाया था सबसे पहले सिंदूर, कैसे शुरू हुई परंपरा? यहां जानें मान्यता

Hot this week

Topics

spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img