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Saharanpur latest News: माता पार्वती ने वर्षों तक भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी. जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था.
सहारनपुर: हिंदू धर्म में सुहागन महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं, लेकिन सिंदूर भरने की परंपरा कब से शुरू हुई और सबसे पहले सिंदूर किसने लगाया था क्या आपको पता है अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल, सिंदूर हर हिंदू विवाहित महिला की पहचान है. सिंदूर को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और ये विवाहित महिला की शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है. यही वजह है कि हर हिंदू महिला विवाह के बाद मांग में सिंदूर भरती है.
कई हिंदू धर्म शास्त्रों में सिंदूर लगाने के महत्व के बारे में बताया भी गया है. शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी. जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया, तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था. साथ ही उन्होंने कहा था कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी उसकी पति को सौभाग्य और लंबी आयु की प्राप्ति होगी. धार्मिक मतों के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने ही सिंदूर लगाया था और तभी से ये परंपरा चल पड़ी.
माता पार्वती से शुरू हुई थी मांग में सिंदूर भरने की प्रथा
आचार्य सोमप्रकाश शास्त्री ने Bharat.one से बात करते हुए बताया कि मांग भरने की सबसे पहले जो प्रथा शुरू हुई है वो आदिकाल से शुरू हुई है और इस प्रथा के अंतर्गत जो हमारे देवी देवता हैं उनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी आते हैं. लक्ष्मी जी और पार्वती जी अखंड सौभाग्य धारणी हैं इनका सौभाग्य अटल है.
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माता पार्वती ने किया था घोर तपस्या
मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कल्पों तक तपस्या की थी. भगवान की शिव के गले में जितने नरमुंडों की माला है उतने जन्मों तक पार्वती माँ ने तपस्या करी है. भगवान शिव के गले में 108 नरमुंडों की माला है मां पार्वती ने 7 जन्मों तक तपस्या करी तब जाकर के राजा हिमालय के यहां पर यह उत्पन्न हुई. दक्ष के यहां पर उसके पाश्चात्य पुत्री रूप में आई और भगवान शिव ने इनको ग्रहण किया पाणिग्रहण संस्कार किया.
