गया : तिलकुट एक ऐसी मिठाई है जिसकी उत्पत्ति बिहार के गया जिला को माना जाता है. ठंड के दिनों में इस मिठाई को तैयार किया जाता है और लगभग 2 से 3 महीने का इसका व्यापार होता है. मकर संक्रांति के दिन तिल या तिल से बने तिलकुट या अन्य मिठाई खाई जाती है. इस त्यौहार को लेकर गया के अलावे राज्य के अन्य जिलों में बड़े पैमाने पर तिलकुट का निर्माण किया जाता है. गया जिला में बाकायदा तिलकुट का तीन बड़ा बाजार है जिसमें गया शहर का रमना रोड, टिकारी रोड और स्टेशन रोड तथा टिकारी प्रखंड मुख्यालय और मोहनपुर प्रखंड क्षेत्र का डंगरा गांव है.
तीनों जगह पर अलग-अलग तरह के तिलकुट बनाई जाती है जिसमें डंगरा और टिकारी में गुड़ की तिलकुट पूरे राज्य भर में प्रसिद्ध है. वहीं गया शहर का शक्कर का तिलकुट की भी एक अलग पहचान है. तिलकुट के व्यवसाय से गया जिले में 10 हजार से अधिक लोग जुड़े हुए हैं. तिलकुट के बढ़ते पहचान और उद्योग के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोग इसे जीआई टैग देने की मांग कर रहे हैं. हालांकि तिलकुट को जीआई टैग देने के लिए आवेदन दे दिए गए हैं और इसका काम प्रक्रिया में है.
गया शहर के तिलकुट व्यवसाय संघ के अध्यक्ष लालजी प्रसाद बताते हैं कि तिलकुट से पेट नही भरेगा बल्कि यह एक ऐसा उपहार या संदेश है जिसे हर कोई पाना चाहता है. गया या बिहार के लोग अन्य जगह पर बसे हुए हैं मकर संक्रान्ति में गया का ही तिलकुट खाना पसंद करते हैं. अब तो डाकघर और प्लेन सेवा के माध्यम से भी गया का तिलकुट अन्य जगहों पर पहुंचने लगी है. इन्होंने बताया यह एक ऐसा उपहार था कि सालों पहले अधिकारियों को गिफ्ट के रूप में देकर बडे बडे काम निकलवा लेते थे.
इन्होंने बताया हम लोग तिलकुट को पहचान दिलाने के दिए जीआई टैग की मांग दो तीन साल से कर रहे हैं लेकिन अभी तक इसपर कोई काम नही दिख रहा है. अगर तिलकुट को जीआई टैग मिल जाता है तो यत्र तत्र गया के तिलकुट के नाम से बेच रहे तिलकुट दुकानदार पर रोक लग जाएगी और गया के तिलकुट की महत्ता बढ़ जाएगी. जीआई टैग नहीं मिलने से लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं चूंकि दुकानदार पेटेंट है नही और यह व्यवसाय सिर्फ दो से तीन महीने का ही होता है.
FIRST PUBLISHED : January 6, 2025, 12:55 IST
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