Home Lifestyle Health एम्स के सर्वे ने खोली पोल, भारत में 70% आंखों के अस्पताल...

एम्स के सर्वे ने खोली पोल, भारत में 70% आंखों के अस्पताल प्राइवेट, बस 40% में इमरजेंसी इलाज, दिल्ली-बिहार, यूपी में हाल खराबaiims rp centre latest survey reveals lapses in eye care facilities in India delhi bihar up do not have enough ophthalmic experts

0


Survey on Eye care facilities in India: भारत में आंखों की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं. बच्चे, युवा और बुजुर्गों की एक बहुत बड़ी आबादी रिफ्रेक्टिव एरर जैसे मायोपिया से लेकर सर्जिकल इलाज की जरूरत वाली गंभीर बीमारियों से जूझ रही है. आंखों के इलाज के लिए भले ही सरकारें कितने भी दावे करें और अभियान चलाएं लेकिन हाल ही में आए एम्स आरपी सेंटर के सबसे बड़े सर्वे ने देश में आंखों के इलाज की सुविधाओं की पोल खोलकर रख दी है. सर्वे रिपोर्ट में बड़ी संख्या में सिर्फ ग्रामीण इलाकों मेंही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली और कई बड़े राज्यों में डॉक्टरों या ऑप्टोमेट्रिस्ट की भारी कमी देखी गई है जो चिंता का विषय है.

एम्स के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज नई दिल्ली ने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, ऑल इंडिया ऑप्थेल्मोलॉजिकल सोसायटी, विजन 2020 इंडिया के साथ मिलकर सर्वे किया है. 2020-2021 के इस सर्वे की रिपोर्ट अब पेश की गई है. यह अपनी तरह का पहला सर्वे है. इसमें भारत में आंखों के इलाज के लिए मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर और ह्यूमन रिसोर्स को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.

एम्‍स आरपी सेंटर सर्वे की जानकारी देते डॉ. प्रवीण व‍श‍िष्‍ठ, डॉ. रोह‍ित सक्‍सेना, डॉ व‍िवेक गुप्‍ता और डॉ. रीमा दादा
एम्‍स आरपी सेंटर सर्वे की जानकारी देते डॉ. प्रवीण व‍श‍िष्‍ठ, डॉ. रोह‍ित सक्‍सेना, डॉ व‍िवेक गुप्‍ता और डॉ. रीमा दादा

देश में 70 फीसदी प्राइवेट आंखों के अस्पताल
यह राष्ट्रीय सर्वे आरपी सेंटर के कम्यूनिटी ऑप्थेल्मोलॉजी प्रमुख डॉ. प्रवीण वशिष्ठ के नेतृत्व में किया गया. जिसमें देश में मौजूद 9440 संस्थानों में से 7901 आई केयर सेंटरों में आंखों के इलाज के लिए मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर और डॉक्टरों-विशेषज्ञों की उपलब्धता और सुविधाओं का पूरा आंकड़ा लिया गया. इस सर्वे के मुताबिक देश में मौजूद आंखों के अस्पतालों में से 70 फीसदी आई केयर सेंटर प्राइवेट हैं. जबकि महज 15.6 फीसदी सरकारी और 13.8 फीसदी एनजीओ संचालित कर रहे हैं.

सिर्फ 40 फीसदी में इमरजेंसी सेवाएं
सर्वे रिपोर्ट बताती है कि कुल 7901 आंखों के अस्पतालों में से सिर्फ 40.5 फीसदी अस्पतालों में ही इमरजेंसी आई केयर सुविधा मौजूद है. 5.7 फीसदी के पास आई बैंक हैं और सिर्फ 28.3 फीसदी आई केयर सेंटर ही लो विजन रिहेबिलिटेशन की सुविधा मरीजों को देते हैं. वहीं बच्चों की आंखों की सर्जरी की बात करें तो सिर्फ 2180 सेंटरों पर ही बच्चों को जनरल एनेस्थीसिया देकर सर्जरी की सुविधा मिल रही है.

मोतियाबिंद और ग्लूकोमा में हालात थोड़े बेहतर
डॉ. प्रवीण वशिष्ठ कहते हैं कि देश में आज भी आंखों में अंधता का बड़ा कारण मोतियाबिंद और ग्लूकोमा हैं, हालांकि सर्वे में मोतियाबिंद के इलाज को लेकर स्थिति थोड़ी अच्छी है. देश में 91.5 फीसदी आंखों के अस्पतालों में केटरेक्ट सर्जरी की जा रही है. जबकि 71.5 फीसदी में ग्लूकोमा का इलाज दिया जा रहा है. हालांकि विट्रियोरेटिनल, केरेटोप्लास्टी और न्यूरोऑप्थेल्मोलॉजी जैसी विशेष सुविधाएं सीमित ही हैं.

दिल्ली में डॉक्टर हैं लेकिन टेक्नीशियन नहीं
डॉ. वशिष्ठ बताते हैं कि आंखों के डॉक्टरों के मामले में दिल्ली देश के औसत से काफी बेहतर है. यहां प्रति 18000 लोगों पर एक आई स्पेशलिस्ट है, जबकि देश में यह आंकड़ा या लक्ष्य 50 हजार पर एक एक्सपर्ट का है, लेकिन सबसे बड़ी कमी दिल्ली में ऑप्टोमेट्रिस्ट या ऑप्थेल्मिक टेक्नीशियन की है. जहां लक्ष्य एक डॉक्टर पर 3 ऑप्थेल्मिक तकनीशियनों का है, वहीं यह संख्या एक से भी काफी कम है. यानि कि दिल्ली में आंखों के नंबर की जांच करने और चश्मा बनाने वालों की भारी कमी है.

यूपी बिहार का हाल बेहद खराब
सर्वे रिपोर्ट बताती है कि यूपी, बिहार, लद्दाख और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में न तो आंखों के डॉक्टर की पर्याप्त मात्रा में हैं और न ही ऑप्टोमेट्रिस्ट या ऑप्थेल्मिक टेक्नीशियन. इन राज्यों में शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण इलाकों का हाल और भी बदतर है. यानि कि आंखों के इलाज के लिए लोगों को काफी दूर जाना पड़ता है.

इस सर्वे में डॉक्टर विवेक गुप्ता, डॉक्टर रोहित सक्सेना, डॉ सौविक मन्ना, डॉ. नुपुर गुप्ता, डॉ. सुरभि अग्रवाल और अन्य टीम ने सहयोग दिया है.


.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.

https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-aiims-rp-centre-latest-survey-reveals-lapses-in-eye-care-facilities-in-india-delhi-bihar-up-do-not-have-enough-ophthalmic-experts-ws-kln-9823910.html

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version