ऑस्टियोपोरोसिस में बारिश कैसे है रिस्की?
-दरअसल, मानसून में हर जगह पानी-पानी, कीचड़, नमी की समस्या बढ़ जाती है. ऐसे में अगर चलने-फिलने में जरा सी भी लापरवाही बरती गई तो ये हड्डियों के टूटने की समस्या को बढ़ा सकता है. फिसलन बढ़ने से गिरने का जोखिम बढ़ जाता है. किसी व्यक्ति की हड्डियां पहले से ही कमजोर हैं, तो गिरने से हड्डी के टूटने का खतरा बना रहता है.
-जब वातावरण में नमी होती है, तो यह हवा को ठंडा बना देती है, जिससे मांसपेशियां अकड़ जाती हैं. इससे जोड़ों में अकड़न महसूस होती है. ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों को दर्द और सूजन की समस्या बढ़ सकती है.
मानसून में ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों बरतें ये सावधानियां
-जोड़ों को गर्म रखना सबसे महत्वपूर्ण उपाय है. जब वातावरण में ठंडक हो, तो शरीर को गीला होने से बचाना चाहिए.
-ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे अपनी हड्डियों और जोड़ों को हल्के से व्यायाम के जरिए सक्रिय रखें. योग, वॉक या स्ट्रेचिंग करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. हड्डियों में लचीलापन भी बढ़ता है.
-ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों को विटामिन डी की मात्रा रेगुलर चेक करानी चाहिए, क्योंकि यह हड्डियों के निर्माण में मदद करता है. सुबह के समय कुछ देर धूप में बैठने से विटामिन डी प्राप्त होता है. यह पर्याप्त नहीं हो तो डॉक्टर से सप्लीमेंट्स लेने के बारे में पूछ सकते हैं.
-मानसून में अगर आप ऑस्टियोपोरोसिस होने की वजह से जोड़ों में दर्द, जोड़ों में अकड़न, सूजन, लालिमा महसूस करते हैं, तो तुरंत ऑर्थोपेडिक सर्जन से संपर्क करें. कोई पुरानी चोट या हड्डी का फ्रैक्चर फिर से दर्द कर रहा है, तो इसे भी इग्नोर ना करें और डॉक्टर से दिखा लें.
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