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Pollution Shorten Life: पॉल्यूशन के भंवरजाल में जिंदगी फंसकर हो रही है छोटी, एक्सपर्ट ने चेतावनी


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Pollution Shorten Age: दिल्ली और एनसीआर में जो काले बादल दिख रहे हैं वह जिंदगी को भी अपने जाल में फंसाने लगा है. एक्सपर्ट ने चेतावनी दी है कि इस पॉल्यूशन के कारण जीवन प्रत्याशा आश्चर्यजनक रूप से कम हो रही है. इसलिए यह बेहद चिंता का विषय है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 356 दर्ज किया गया. यह अपने आप में डरावनी तस्वीर है.

Pollution Shorten Life: पॉल्यूशन के भंवरजाल में जिंदगी फंसकर हो रही है छोटीदिल्ली-एनसीआर के आसमान का काला बादल जिंदगी को कर रहा छोटा. (फोटो-पीटीआई)

Pollution Shorten Age: दिल्ली और एनसीआर के आसमान में जो काले बादल मंडरा रहे हैं उसके जाल में हम सब फंस रहे हैं. सिर्फ फंस ही नहीं रहे हैं बल्कि यह हमारी जिंदगी में ग्रहण लगाने के लिए तैयार है. हेल्थ एक्सपर्ट ने चेतावनी दी है कि दिल्ली के इस काले बादल से जीवन प्रत्याशा बेहद कम हो रही है. इन दिनों दिल्ली-एनसीआर घने स्मॉग के जाल में फंसा हुआ है. ये वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को दर्शाता है. रिहाइशी इलाकों से लेकर सड़कों और एयरपोर्ट तक पर विजिबिलिटी नाममात्र की है, जिससे रोजाना की आवाजाही पर असर पड़ रहा है और यहां रहने वालों की हेल्थ संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 356 दर्ज किया गया.

लाइफ टाइम जीवन पर असर करता है पॉल्यूशन

एक्सपर्ट ने बताया कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से स्ट्रोक, कार्डियोवस्कुलर बीमारी, सांस की बीमारी और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पूर्व सचिव राजेश भूषण ने कहा कि लंबे समय तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से न सिर्फ जीवन प्रत्याशा कम होती है और लंबे समय तक किसी बीमारियों के साथ जीने की आशंका बढ़ जाती है. ज्यादा प्रदूषित शहरों में लोग हो सकता है कि लंबे समय तक जीवित रहें, लेकिन पुरानी बीमारियों से उनके जीवन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. उत्पादकता घटती है, जीवन गुणवत्ता कम होती है और इस तरह ऐसे लोग आर्थिक क्षेत्र में भी कम योगदान दे पाते हैं. उन्होंने ‘इलनेस टू वेलनेस’ फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हेल्थकेयर सिस्टम, शहरी नियोजन और जन जागरूकता के बीच तालमेल बिठाकर कार्रवाई करने की जरूरत है, जिसमें निवारक और प्राइमरी हेल्थकेयर पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए.

क्या कहा एम्स के पल्मोनोलिस्ट ने

इधर एम्स के पूर्व विभागाध्याक्ष पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जी. सी. खिलनानी ने वायु प्रदूषण को मानव निर्मित सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल बताया. उन्होंने कहा कि इससे सांस और कार्डियोवस्कुलर हेल्थ पर व्यापक असर पड़ने की आशंका बनी रहती है. उन्होंने कहा, वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक प्रभाव अक्सर दिखाई नहीं देते. बहुत छोटे कण फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं, खून में मिल जाते हैं और बिना किसी शुरुआती चेतावनी के कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं. न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. दलजीत सिंह ने बताया कि प्रदूषण दिमाग में खून के संचार को प्रभावित करता है और इस्केमिक और हेमरेजिक दोनों तरह के स्ट्रोक का खतरा काफी बढ़ा देता है. सिंह ने कहा कि हम अब ज्यादा प्रदूषण वाले महीनों में स्ट्रोक के मामलों में साफ तौर पर मौसमी बढ़ोतरी देख रहे हैं, जो बताता है कि प्रदूषण एक स्वतंत्र जोखिम कारक के रूप में उभर रहा है. स्ट्रोक के अलावा, वायु प्रदूषण अल्जाइमर, डिमेंशिया और पार्किंसन रोग जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों से भी जुड़ा हुआ है, जिससे यह एक बढ़ती हुई न्यूरोलॉजिकल चुनौती बन गई है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

गरीबों और बच्चों के लिए ज्यादा मुश्किल

फिक्की हेल्थ सेक्टर के मेंटर डॉ. हर्ष महाजन ने कहा कि वायु प्रदूषण लगभग हर बीमारी की श्रेणी को बढ़ाने वाला एक साइलेंट जोखिम कारक बन गया है. महाजन ने कहा, यह गरीबों, बच्चों और बाहर काम करने वालों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जबकि इस समस्या में उनका योगदान सबसे कम होता है. खतरनाक बात यह है कि यह मानना ​​कि सिर्फ टेक्नोलॉजी ही इस संकट को हल कर देगी. लेकिन जिस चीज की सबसे ज्यादा कमी है, वो गंभीरता और जवाबदेही की है. विशेषज्ञों ने स्वस्थ जीवन और सुदृढ़ अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता, कड़े नियमों को लागू करने और जागरूक जनता की भागीदारी की जरूरत पर बल दिया. इनपुट-आईएएनएस

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Lakshmi Narayan

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