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गोलकुंडा की ‘फतेह रहबर’ तोप बनी इतिहास की गूंज, जब धोखे ने मिटा दी थी एक सल्तनत की शान!

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Hyderabad News Hindi : गोलकुंडा किले की मूक गवाह ‘फतेह रहबर’ तोप आज भी उस धोखे, रणनीति और रक्तरंजित युद्ध की कहानी कहती है जिसने एक पूरी सल्तनत को इतिहास के पन्नों में समेट दिया. 17 टन वजनी इस तोप ने मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे, लेकिन आखिरकार एक विश्वासघात ने कुतुब शाही वंश का अंत कर दिया.

फतेह रहबर तोप आज भी गोलकुंडा किले के पेटला बुर्ज पर खड़ी है एक मूक गवाह के रूप में उस निर्णायक युद्ध की. यह न सिर्फ कुतुब शाही वंश की सैन्य शक्ति का प्रतीक है बल्कि उस रणनीतिक धोखे और अंतिम संघर्ष की भी याद दिलाती है जिसने एक शानदार सल्तनत का अंत कर दिया. यह तोप उस ऐतिहासिक मोड़ का प्रतीक है जब दक्कन पर मुगलों का वर्चस्व पूरी तरह से स्थापित हो गया. फतेह रहबर तोप का निर्माण 1588 ईस्वी में हुआ था यह तोप 1687 की लड़ाई से लगभग एक सदी पहले बनाई गई थी और उस युद्ध में इसने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इतिहासकार ज़ाहिद सरकार के अनुसार गोलकुंडा का किला जो अपनी अजेय प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता था उसका 1687 में पतन सिर्फ एक युद्ध का नतीजा नहीं, बल्कि राजनीति धोखे और एक घेराबंदी की लंबी कहानी है.

तनाव के कारण
गोलकुंडा के कुतुब शाही शासक शिया मुसलमान थे जबकि औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी शासक था. यह धार्मिक मतभेद लगातार तनाव का कारण बना रहता था. सबसे बड़ा कारण था ताना शाह का अपने प्रधानमंत्री मदन्ना के माध्यम से मराठा शासक शिवाजी के पूर्व सेनापति और शक्तिशाली सामंत तानाजी को अपने यहां नौकरी पर रखना. औरंगज़ेब को डर था कि यह हिंदू-शिया गठबंधन उसके लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है.

घेराबंदी और युद्ध (1687)
इन कारणों से उकताकर औरंगजेब ने 1687 में अपनी विशाल मुगल सेना के साथ गोलकुंडा पर हमला कर दिया. महीनों तक घेराबंदी के बावजूद मुगल सेना किले का बचाव तोड़ने में नाकाम रही. किले की तोपें किसी भी हमले को रोकने के लिए काफी थीं.

फतेह रहबर तोप की भूमिका
यहीं पर फतेह रहबर तोप की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई. यह विशाल तोप, जिसका वजन लगभग 17 टन था, किले के पेटला बुर्ज पर तैनात थी. इसे 1588 में मोहम्मद कुली कुतुब शाह के शासनकाल में फारसी तोपकार मोहम्मद बिन हुसैन रहमानी ने ढाला था. अपनी ऊंची जगह पर स्थित होने के कारण, यह तोप मैदान में दूर तक मुगल सेना पर गोले दाग सकती थी. शुरुआती लड़ाई में इसने मुगलों के कई हमलों को विफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

गद्दी का अंत
एक बार किले का मुख्य द्वार खुल जाने के बाद मुगल सेना ने टूट पड़ी और उन्होंने गोलकुंडा पर कब्जा कर लिया. अंतिम कुतुब शाही शासक अबुल हसन ताना शाह को गिरफ्तार कर लिया गया. औरंगज़ेब ने उन्हें मारने के बजाय दौलताबाद के किले में कैद कर दिया जहां लगभग 12 साल बाद 1699 में उनकी मृत्यु हो गई.

Rupesh Kumar Jaiswal

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन… और पढ़ें

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गोलकुंडा की ‘फतेह रहबर’ तोप बनी गवाह, जब धोखे से मिट गई सल्तनत


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