Dussehra Sona Patti Upay: भारत की सांस्कृतिक परंपराएं केवल धार्मिक भावनाओं तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि उनमें गहराई से जुड़ी जीवनशैली और लोक-आस्थाएं भी छिपी होती हैं. विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है. इस दिन रावण दहन के साथ-साथ एक और खास परंपरा निभाई जाती है – सोनपत्ता (या सोना पत्ती) का आदान-प्रदान. यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक और पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी इसके लाभ बताए गए हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
दशहरे के दिन “सोना पत्ती” के रूप में जिस चीज का आदान-प्रदान किया जाता है, वह असली सोना नहीं होती. यह शमी या आप्टा पेड़ की पत्तियां होती हैं, जिन्हें शुभ माना जाता है. इन पत्तों को आपसी रिश्तों में समृद्धि, सौभाग्य और धन की कामना के साथ बांटा जाता है.
दशहरे पर सोनपत्ता बांटने का महत्व
1. धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि शमी के पेड़ में कुबेर का वास होता है. इस दिन इसकी पूजा करने से लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं. जब यह पत्तियां किसी को ‘सोना’ कहकर दी जाती हैं, तो इसका आशय होता है – “मैं तुम्हें सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद दे रहा हूं.”
2. पौराणिक संदर्भ
रामायण के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय पाने से पहले शमी वृक्ष के समक्ष अपनी विजय की प्रार्थना की थी. इसी कारण, इसे विजय का प्रतीक माना जाता है और दशहरे के दिन इसका विशेष महत्व होता है.
3. वैज्ञानिक और औषधीय पहलू
शमी के पत्तों में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं. इनकी मौजूदगी हवा में मौजूद सूक्ष्म कीटाणुओं और फफूंद को समाप्त करने में मदद करती है. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी शमी के पौधे को घर के पास लगाना शुभ और लाभकारी माना जाता है.
सोना पत्ती बांटने की प्रक्रिया
1. शमी या आप्टा का पेड़ खोजें – पास के किसी मंदिर, बाग या खेत में इस पेड़ की पहचान करें.
2. पूजा करें – दशहरे के दिन सुबह या संध्या को पेड़ की पूजा करें. अगरबत्ती, फूल और जल चढ़ाकर पत्तियों को श्रद्धा के साथ लें.
3. पत्तियां बांटें – पत्तियों को ‘सोना पत्ती’ कहकर अपने मित्रों, पड़ोसियों और परिवारजनों में बांटें. ऐसा करते समय शुभकामनाएं देना न भूलें.
इस परंपरा का लाभ
-यह क्रिया घर में सकारात्मक ऊर्जा लाती है.
-आर्थिक रूप से स्थिरता और प्रगति के संकेत देती है.
-पारिवारिक रिश्तों में सौहार्द और प्रेम बढ़ाती है.
-मान्यता है कि इससे भविष्य में आने वाली आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं.
दशहरे का पर्व केवल रावण दहन का नहीं, बल्कि आत्मविकास, विजय और समृद्धि की शुरुआत का अवसर है. सोनपत्ता का आदान-प्रदान एक छोटी सी क्रिया जरूर है, लेकिन इसका भाव बहुत गहरा है. यह परंपरा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजते हुए, हमें एक-दूसरे की भलाई की कामना करने की प्रेरणा देती है.
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