बता दें कि, जब भी कोई ग्रहण लगता है तो तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो जाती हैं. जैसे- ग्रहण के दौरान क्या करना चाहिए क्या नहीं? ग्रहण के दौरान सोना चाहिए या नहीं? ग्रहण में भोजन करना चाहिए या नहीं? और भी तमाम तरह के सवाल होते हैं. लेकिन, एक सवाल अकसर अनसुलझा रह जाता है और वो है कि मानव इतिहास का पहला सूर्य ग्रहण कब लगा? बेशक इसपर वैज्ञानिक दृष्टिकोण कुछ भी हो, लेकिन धार्मिक महत्व कुछ और ही कहता है. कई विद्वान सूर्य ग्रहण को त्रेतायुग से जोड़ते हैं तो कुछ द्वापर से. तो चलिए जानते हैं कि, आखिर इस सवाल पर असल धार्मिक पहलू क्या है?

सूर्य ग्रहण का त्रेता युग से संबंध
उस दिन राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे, राहु सूर्य को ग्रहण लगा पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुख में भर लिया, जिससे पूरा संसार अंधकारमय हो गया. इस पर राहु को कुछ समझ में नहीं आया. तब उसने ये घटना इंद्रदेव को बताई. इंद्र देव के आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया, तो इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान जी के मुख पर प्रहार किया. इसके बाद सूर्य निकल कर बाहर आए.
सूर्य ग्रहण का द्वापर युग से संबंध
पुत्र की मौत का बदला लेने के लिए अर्जुन ने जयद्रथ का वध करना चाहते थे. जयद्रथ को बचाने के लिए कौरव सेना ने सुरक्षा घेरा बना लिया था और अर्जुन को जयद्रथ तक पहुंचने नहीं दिया. जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि सूर्य अस्त होने वाला है, तब उन्होंने अपनी माया से सूर्य ग्रहण कर दिया. जिस वजह से अंधेरा छा गया. सभी को लगा कि सूर्य अस्त हो गया है. ग्रहण लगते ही जयद्रथ सुरक्षा घेरे से बाहर निकलकर अर्जुन के सामने आ गया और बोला सूर्यास्त हो गया है अब अग्निसमाधि लो. कुछ समय बाद कृष्ण की लीला से सूर्य ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा. ग्रहण के खत्म होते ही अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/surya-grahan-when-was-first-solar-eclipse-seen-in-human-history-ws-kl-9645711.html