राधा अष्टमी का महत्व
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत रखकर विधि विधान के साथ श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा अर्चना करने से सभी दुखों व परेशानियों से मुक्ति मिलती है और धन, सम्मान व सौभाग्य में वृद्धि होती है. शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी की व्रत करते हैं, उनको राधा अष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए अन्यथा व्रत अधूरा माना जाता है. इस व्रत के करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को मृत्यु के बाद गोलोक की प्राप्ति होती है. कई ग्रंथों में इसे आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ दिन माना गया है. इस दिन राधा जी का व्रत रखकर, राधा-कृष्ण का मिलकर पूजन करना, राधा नाम जपना और राधा-कृष्ण भजन गाना अत्यंत शुभ माना गया है.

राधा अष्टमी शुभ योग
दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य सिंह राशि में रहेंगे और चंद्रमा वृश्चिक राशि में रहेंगे. वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 47 मिनट तक चलेगा और राहुकाल का समय सुबह 9 बजकर 10 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. राधा अष्टमी के दिन सिंह राशि में केतु, सूर्य और बुध ग्रह की युति से त्रिग्रही योग, बुधादित्य योग बन रहा है.
राधा रानी मंत्र
ॐ राधायै नमः॥
कृष्ण-प्रिय मंत्र
ॐ श्री कृष्णप्रिये राधायै नमः॥
राधे राधे जपते रहो, कृष्ण मिले स्वतः॥
इनमें से किसी भी मंत्र का 108 बार जप राधा अष्टमी पर करना अत्यंत फलदायी माना गया है.
राधा अष्टमी पूजा विधि (स्टेप-बाय-स्टेप)
आज ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर पीले या लाल वस्त्र पहनें. इसके बाद व्रत का संकल्प लें. फिर चौकी पर लाल/पीला वस्त्र बिछाकर राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. कलश, दीपक और धूप रखें. दीपक जलाकर राधा-कृष्ण का ध्यान करें. इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं (अगर प्रतिमा हो तो केवल जल छिड़कें). स्नान के बाद पोशाक पहनाएं और फूल, माला, सिंदूर, कुमकुम और अक्षत अर्पित करें. इसके बाद राधा जी को भोग में अरबी की सब्जी, रबड़ी, केसर वाली खीर, मौसमी फल, मालपुए और पंचामृत अर्पित करें. राधा-कृष्ण की आरती करें, राधे-राधे नाम जप करें. दिनभर फलाहार या जल से व्रत रखें. संध्या को कथा या भजन करें और दान देकर व्रत का समापन करें.
श्री राधा रानी की आरती
आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की…आरती श्री वृषभानु लली की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेकविराग विकासिनि ।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि, मधुर मनोहर मूरति सोहनि ।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥
संतत सेव्य सत मुनि जनकी, आकर अमित दिव्यगुन गनकी ।
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी, अति अमूल्य सम्पति समता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥
कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि, चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।
जगजननि जग दुखनिवारिणि, आदि अनादिशक्ति विभुता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥
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