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Spiritual pregnancy tips। पति-पत्नी के लिए गर्भकालीन टिप्स

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Spiritual Pregnancy Tips: गर्भावस्था एक ऐसा समय होता है जब महिला सिर्फ एक बच्चे को जन्म नहीं देती, बल्कि अपने भीतर एक नया जीवन और नई सोच भी पनपाती है, इस दौरान उसका हर विचार, हर भावना और हर कर्म उस बच्चे के स्वभाव और भविष्य पर असर डालता है जो उसके गर्भ में पल रहा है, पुराने धर्म ग्रंथों और ज्योतिष शास्त्रों में भी यह बात साफ तौर पर लिखी गई है कि मां-बाप के आचार-विचार, खान-पान और जीवनशैली का सीधा असर बच्चे की मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति पर पड़ता है. कहा जाता है कि अगर गर्भवती महिला और उसका पति इस दौरान मिलकर कुछ खास काम करें, तो होने वाली संतान न सिर्फ स्वस्थ और बुद्धिमान बनती है बल्कि उसमें एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा होती है, वह जन्म से ही ईश्वर के प्रति श्रद्धा, करुणा और सकारात्मकता से भरी होती है, इसी वजह से धर्म शास्त्रों में कुछ खास कार्य बताए गए हैं जिन्हें गर्भावस्था के दौरान करने से होने वाली संतान भक्तिमय और सौम्य स्वभाव की होती है, आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से वो 5 काम जो पति-पत्नी दोनों को मिलकर करने चाहिए.

1. धार्मिक ग्रंथों का पाठ या श्रवण करना
गर्भावस्था में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है कि महिला रोजाना कुछ समय धार्मिक ग्रंथों का पाठ करे या सुने. रामायण, गीता, सुंदरकांड, या कोई भी सकारात्मक श्लोक रोज सुनने या पढ़ने से मन शांत होता है और घर का वातावरण पवित्र बनता है, अगर गर्भवती महिला खुद न पढ़ पाए, तो पति को चाहिए कि वह पत्नी के पास बैठकर ग्रंथों का पाठ करे ताकि दोनों मिलकर उस ऊर्जा को महसूस कर सकें. कहा जाता है कि जैसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह का ज्ञान अपनी मां सुभद्रा से पाया था, वैसे ही बच्चा भी मां की हर भावना और आवाज को महसूस करता है.

2. बातों और शब्दों में रखें सकारात्मकता
गर्भ के दौरान बोले गए शब्द बहुत मायने रखते हैं. पति-पत्नी दोनों को इस समय झगड़े, चिंता या नकारात्मक बातों से दूर रहना चाहिए, अगर आप खुश रहेंगे और अच्छाइयों पर बात करेंगे तो बच्चा भी वैसा ही संस्कारी बनेगा. इस दौरान दोनों को एक-दूसरे से प्यार और सम्मान से बात करनी चाहिए, और भविष्य में बच्चे के अच्छे संस्कारों, शिक्षा और जीवन के बारे में सकारात्मक चर्चा करनी चाहिए. याद रखें, गर्भ में पल रहा बच्चा सिर्फ खून और पोषण नहीं, बल्कि आपके विचार भी ग्रहण करता है.

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3. रोज ध्यान और प्रार्थना करना
सुबह और शाम कुछ मिनटों के लिए ईश्वर का नाम लेना और शांत मन से ध्यान करना गर्भवती महिला और उसके पति दोनों के लिए बेहद जरूरी बताया गया है, इससे मन में शांति आती है, तनाव कम होता है, और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. आप दोनों साथ बैठकर आने वाले बच्चे के लिए दुआ कर सकते हैं उसके अच्छे स्वास्थ्य, समझदारी और आध्यात्मिक गुणों के लिए. यह अभ्यास केवल मानसिक सुकून नहीं देता बल्कि बच्चे तक भी वह ऊर्जा पहुंचाता है, जिससे वह जन्म से ही शांत और संतुलित स्वभाव का बनता है.

4. पवित्र स्थानों की यात्रा और दान-पुण्य करना
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि गर्भवती महिला को इस दौरान मंदिर, नदी किनारे, गौशाला या किसी शांत आश्रम जैसे पवित्र स्थानों पर जरूर जाना चाहिए. वहां का वातावरण शांति और सुकून से भरा होता है जो मां और बच्चे दोनों को सकारात्मक ऊर्जा देता है. पति-पत्नी अगर साथ में गरीबों को खाना खिलाएं, पक्षियों को दाना डालें या जरूरतमंदों की मदद करें, तो उससे घर का माहौल भी आध्यात्मिक बनता है, इस तरह के दान-पुण्य के काम से बच्चा करुणामय, दयालु और सेवा-भाव वाला बनता है.

5. सात्विक और शुद्ध भोजन का सेवन करें
भोजन सिर्फ शरीर को नहीं, मन को भी प्रभावित करता है, इस दौरान सात्विक भोजन यानी ताजा फल, सब्जियां, दूध, दालें और अनाज का सेवन करना बहुत जरूरी है, पति को भी पत्नी के साथ इसी नियम का पालन करना चाहिए ताकि घर का माहौल संतुलित रहे. मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से बचें, क्योंकि ये चीजें मन को अस्थिर करती हैं और गर्भस्थ बच्चे पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं. कहा जाता है कि तामसिक भोजन से राहु-केतु जैसे पाप ग्रह सक्रिय हो जाते हैं, जो मानसिक तनाव और आध्यात्मिक कमजोरी का कारण बन सकते हैं.


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https://hindi.news18.com/astro/astro-tips-5-spiritual-pregnancy-tips-husband-wife-must-follow-these-things-during-pregnancy-ws-ekl-9827932.html

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