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Torch-Lit Holi at Dwarkadhish Temple, Rajsamand: A Centuries-Old Unique Tradition

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Udaipur Special Holi: सदियों पुरानी परंपरा कांकरोली स्थित संप्रदाय के तीसरे मुख्य पीठ द्वारकाधीश मंदिर में होली से एक दिन पहले विशेष अनुष्ठान के तहत विशाल मशालें प्रज्वलित की जाती हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों …और पढ़ें

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राल होली

हाइलाइट्स

  • द्वारकाधीश मंदिर में जलती मशालों के बीच होली खेली जाती है.
  • राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से श्रद्धालु आते हैं.
  • श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ी परंपरा को जीवंत रूप में देखा जाता है.

उदयपुर. राजस्थान में होली की कई अनोखी परंपराएँ हैं, लेकिन राजसमंद जिले के कांकरोली स्थित द्वारकाधीश मंदिर की होली अपनी भव्यता और रहस्यमय परंपरा के कारण खास है. यहां जलती हुई मशालों के बीच होली खेली जाती है, जो आस्था का प्रतीक है और इसे देखने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं.

सदियों पुरानी परंपरा
कांकरोली के द्वारकाधीश मंदिर में होली से एक दिन पहले विशेष अनुष्ठान के तहत विशाल मशालें प्रज्वलित की जाती हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए राजस्थान ही नहीं, बल्कि गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस आयोजन में मंदिर के मुख्य आकर्षण चौरासी खंभ और राल दर्शन होते हैं, जिनका भक्त साल भर इंतजार करते हैं. फागोत्सव के दौरान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ी इस परंपरा को जीवंत रूप में देखने का अवसर श्रद्धालुओं को मिलता है.

श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ी मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण बालपन में वृंदावन में अपने सखाओं के साथ गायों को चराने जाते थे. उस दौरान जंगल में भयंकर आग लगी थी, जिससे श्रीकृष्ण ने अपने सखा और गायों की रक्षा की. जब वे घर लौटे और यह घटना बाबा नंद और माता यशोदा को सुनाई, तो मान्यता है कि श्रीकृष्ण के मुख से एक ज्वाला विस्फोट के रूप में निकली. इसी मान्यता के आधार पर सदियों से कांकरोली के द्वारकाधीश मंदिर में विशेष ‘राल सामग्री’ से बनी मशालों को प्रज्वलित किया जाता है. इस दौरान श्री द्वारकाधीश के समक्ष इन मशालों को रखा जाता है और सेवक निरंतर राल डालकर अग्नि को प्रज्वलित करते रहते हैं.

अद्भुत दृश्य और भक्तों की श्रद्धा
जब मशालों में से तेज लपटें उठती हैं, तो पूरा मंदिर परिसर ‘जय द्वारिकाधीश’ के उद्घोष से गूंज उठता है. भक्त इसे शुभ संकेत मानते हैं और इसे देखने मात्र से स्वयं को धन्य मानते हैं. श्रद्धालुओं के लिए राल दर्शन एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव होता है, जिसमें वे भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की झलक पाते हैं. यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि एक अद्वितीय सांस्कृतिक परंपरा भी है, जो राजस्थान के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का प्रतीक है.

परंपरा जो आस्था को मजबूत बनाती है
द्वारकाधीश मंदिर की यह विशेष होली परंपरा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इतिहास, आस्था और परंपरा का संगम भी है. जलती हुई मशालों के बीच होली का यह उत्सव मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और भक्तों को श्रीकृष्ण की लीलाओं से जोड़ने का एक विशेष माध्यम बना हुआ है.

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द्वारकाधीश मंदिर में जलती मशालों के बीच होली, राजसमंद की सदियों पुरानी परंपरा


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