Home Dharma कितने भी कट्टर हो…ये 5 काम किए बिना नहीं रह पाओगे मुसलमान,...

कितने भी कट्टर हो…ये 5 काम किए बिना नहीं रह पाओगे मुसलमान, टैक्स चुकाने के बाद भी पैसा रहेगा काला

0


Last Updated:

5 duties in islam : इस्लाम में “फर्ज़” वह अमल है, जिसे अदा करना हर मुसलमान पर लाज़मी है. इन्हें पूरा किए बिना ईमान मुकम्मल नहीं माना जाता. इस्लाम की बुनियाद पांच फर्ज़ों पर टिकी है. ये वो इबादतें हैं जिनके बिना मुसलमान का दीन अधूरा रहता है. आइये मौलाना से जानते हैं.

इस्लाम में फराइज यानी फर्ज़ों को हर मुस्लमान को अदा करना ज़रूरी बताया गया है. अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि इस्लाम एक मुकम्मल तरीका-ए-ज़िंदगी है जिसमें कुछ अमल ऐसे हैं जिन्हें अदा करना हर मुसलमान पर लाज़मी है. इन फर्ज़ों को पूरा करना न सिर्फ ईमान की निशानी है बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करने का ज़रिया भी है.

मौलाना इफराहीम हुसैन के मुताबिक, इस्लाम में कुल पांच बुनियादी फर्ज़ बताए गए हैं, जो हर मुसलमान के लिए अनिवार्य हैं. पहला फर्ज़ ईमान लाना यानी तौहीद पर यकीन रखना. “अशहदु अं ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” इसका मतलब है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं. यही कलिमा इस्लाम की बुनियाद है.

दूसरा फर्ज़ है नमाज़, जो दिन में पांच वक्त अदा की जाती है. मौलाना इफराहीम ने बताया कि नमाज़ मुसलमान को गुनाहों से रोकती है और उसे अल्लाह के करीब लाती है. नमाज़ छोड़ देना गुनाहे-कबीरा है और जो जान-बूझकर नमाज़ नहीं पढ़ता, वह इस्लाम की बुनियाद से दूर हो जाता है.

इस्लाम में तीसरा फर्ज़ है रोज़ा रखना है, जो रमज़ान के महीने में हर बालिग मुसलमान पर लाज़मी है. रोज़ा सिर्फ भूख-प्यास से रुकना नहीं, बल्कि अपनी ज़बान, आंख और दिल को भी गुनाहों से रोकना है. यह सब्र, तौबा और अल्लाह की नेमतों की कद्र सिखाता है.

चौथा फर्ज़ है ज़कात अदा करना है. मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन के मुताबिक, ज़कात समाज में बराबरी और रहमदिली का पैग़ाम देती है. जब मालदार अपने माल का हिस्सा गरीबों में बांटता है, तो न सिर्फ उसका माल पाक हो जाता है, बल्कि समाज में मोहब्बत और इंसाफ़ कायम होता है और समाज में बराबरी रहती है.

पांचवां फर्ज़ है हज, जो हर उस मुसलमान पर फर्ज़ है जिसके पास माली और जिस्मानी काबिलियत हो. हज इंसान को अल्लाह की रहमत और माफी के करीब लाता है. यह सब्र, एकता और कुर्बानी का बड़ा सबक देता है. माली और जिस्मानी हालात से मजबूत हर मुस्लिम को ज़िन्दगी मे एक बार हज ज़रूर करना चाहिए.

मौलाना इफराहीम बताते हैं कि इन पांच बुनियादी फर्ज़ों के अलावा कुछ शरई फराइज़ भी हैं. जैसे वालिदैन की इज़्जत करना, हलाल कमाई करना, इल्म हासिल करना और किसी का हक़ न मारना. जो इन फर्ज़ों को अदा नहीं करता, वह गुनाहे-कबीरा का मुस्तहिक होता है और उसकी माफी मुश्किल है जब तक वो तौबा न करे. इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह अपने फर्ज़ अदा करे.

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homedharm

कितने भी कट्टर हो…ये 5 काम किए बिना नहीं रह पाओगे मुसलमान

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version