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क्या होता है जकात और फितरा, रमजान के महीने में क्यों है जरूरी, जानें दोनों का मतलब

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रमजान स्पेशल: रमजान का पाक महीना चल रहा है. मुस्लिम समुदाय के लिए यह महीना इबादत का है. रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ जकात और फितरा देने का भी बहुत महत्व है. ईद की नमाज से पहले हर मुस्लिम को जकात औ…और पढ़ें

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क्या होता है जकात और फितरा, रमजान के महीने में क्यों है जरूरी

हाइलाइट्स

  • रमजान में जकात और फितरा देना महत्वपूर्ण है.
  • जकात फर्ज है, जबकि फितरा वाजिब है.
  • जकात आमदनी का 2.5% गरीबों को देना होता है.

वसीम अहमद/अलीगढ़. रमजान का पाक महीना चल रहा है और मुस्लिम समुदाय के लिए यह महीना इबादत का है. रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात और फितरा देने का भी बहुत महत्व है. ईद की नमाज से पहले हर मुस्लिम को जकात और फितरा अदा करना होता है. असल में ये एक तरह का दान ही है. आइए जानते हैं जकात और फितरा के बारे में.

इस्लाम में नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात और फितरा देने का भी बहुत महत्व है. हर मुस्लिम को जकात और फितरा अदा करना होता है. जकात फर्ज है, जबकि फितरा वाजिब है. जिनके पास पैसे हैं, उनके लिए जकात और फितरा निकालना फर्ज है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है. वैसे तो जकात साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना मुस्लिम समाज में ज्यादा अच्छा माना जाता है. रमजान के महीने में एक नेक काम का 70 गुना ज्यादा सबाब मिलता है. इसके अलावा, गरीब तबके के लोगों की ईद भी अच्छे से मन सके, इसलिए भी रमजान के महीने में जकात या फितरा ज्यादा दिया जाता है.

संपत्ति के हिसाब से दी जाती है जकात
इस्लामिक स्कॉलर मौलाना उमेर खान बताते हैं कि हर उस मुसलमान के लिए जकात देना जरूरी है, जो हैसियतमंद है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को देना, जकात कहलाता हैं. अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपए बचते हैं, तो उसमें से 2.5 रुपए किसी गरीब को देना जरूरी होता है. वैसे तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन ज्यादातर लोग रमजान के महीने में ही जकात निकालते हैं. ईद से पहले जकात अदा करने का रिवाज है. जकात गरीबों, विधवाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार और कमजोर व्यक्ति को दी जाती है. महिलाओं या पुरुषों के पास अगर सोने-चांदी के गहनों के रूप में भी कोई संपत्ति होती है, तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है.

जकात और फितरे का अंतर
उमेर खान ने बताया कि अगर परिवार में 5 सदस्य हैं और वे सभी नौकरी या किसी व्यवसाय के जरिए पैसा कमाते हैं, तो सभी पर जकात देना फर्ज माना जाता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी का बेटा या बेटी भी नौकरी या व्यवसाय के जरिए पैसा कमाते हैं, तो वे मां-बाप अपनी कमाई पर जकात देकर नहीं बच सकते हैं. किसी भी परिवार में उसके मुखिया के कमाने वाले बेटे या बेटी के लिए भी जकात देना फर्ज होता है. जकात और फितरे के बीच बड़ा अंतर यह है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जितना ही जरूरी होता है, लेकिन फितरा देना इस्लाम के तहत अनिवार्य नहीं है. जैसे जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है, जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती. इंसान अपनी आर्थिक स्थिति के मुताबिक कितना भी फितरा दे सकता है.

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