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जानिए श्राद्ध और तर्पण में अंतर, पहली बार श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के लिए क्या करना जरूर है

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कुंदन कुमार/गया: गया में पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न कर्मकांड किए जाते हैं, जिनमें तर्पण और श्राद्ध प्रमुख हैं. पितृपक्ष के 16 दिनों में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि इन कर्मों से पितर प्रसन्न होते हैं, जिससे घर-परिवार में खुशहाली बनी रहती है.

तर्पण: एक सरल प्रक्रिया
गया मंत्रालय वैदिक पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि तर्पण का शाब्दिक अर्थ “जल अर्पण” है. तर्पण में पितरों को जल, दूध, तिल और कुश अर्पित किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति और संतोष मिलता है. यह प्रक्रिया विशेष रूप से पितृपक्ष के दौरान की जाती है और इसे किसी भी समय किया जा सकता है. तर्पण में काले तिल मिश्रित जल का अर्पण किया जाता है, जो पितरों, देवताओं और ऋषियों को तृप्त करता है.

श्राद्ध: विस्तृत कर्मकांड
श्राद्ध को पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया मुक्ति कर्म माना जाता है. यह एक विस्तृत कर्मकांड है, जिसमें पिंडदान, हवन और भोजन दान जैसी धार्मिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं. श्राद्ध का उद्देश्य पितरों को तृप्त करना और उन्हें मोक्ष प्रदान करना है. इसे विशेष रूप से पितृपक्ष में किया जाता है और इसके लिए विधिवत नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है.

श्राद्ध के दौरान सभी क्रियाएं दाएं कंधे पर जनेऊ धारण करके और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके की जाती हैं. इसमें पंचबली का आयोजन किया जाता है, जिसमें गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चींटी के लिए भोजन अर्पित किया जाता है.

पहली बार श्राद्ध करने वालों के लिए जानकारी
राजा आचार्य ने बताया कि जो लोग पहली बार श्राद्ध कर रहे हैं, उनके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध सबसे प्रमुख और आवश्यक कर्मकांड है. इसे सही समय और नियमों के साथ करना बेहद जरूरी है. जबकि तर्पण भी आवश्यक है, यह श्राद्ध की तुलना में कम जटिल होता है. अगर किसी कारणवश श्राद्ध नहीं किया जा सकता, तो तर्पण करके भी पितरों को तृप्त किया जा सकता है. इस प्रकार, पितृपक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध दोनों ही कर्मकांड महत्वपूर्ण हैं, जो पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्रदान करते हैं.

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