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दिवाली की पूजा में देवी लक्ष्मी का क्या महत्त्व है? | – News in Hindi

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दिवाली दीपों का त्योहार है, जो प्रसन्नता, समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक है. इस दिन केवल एक दीप जलाना पर्याप्त नहीं है. ज्ञान का प्रकाश फैलाने और अंधकार को दूर करने के लिए हमें कई दीप जलाने की आवश्यकता है.

दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है जो समृद्धि की देवी हैं. उनके हाथ कमल जैसे कोमल हैं, यानी उनमें कोई कठोरता नहीं होती. जब आप लक्ष्मी जी का ध्यान करते हैं, तो ऐसा अनुभव करें कि आप एक खिले हुए कमल जैसे हो गए हैं. समृद्धि के बिना प्रसन्नता नहीं मिल सकती और ज्ञान के बिना समृद्धि संभव नहीं है. गणेश जी ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं. ज्ञान और समृद्धि एक साथ चलते हैं, इसलिए दिवाली के दिन गणेश जी और लक्ष्मी जी दोनों की पूजा की जाती है. यदि जीवन में ज्ञान का अभाव हो, तो जो थोड़ी बहुत समृद्धि है, वह भी हमें परेशानियों की ओर ले जा सकती है. जब आपके पास अच्छे विचार और ज्ञान होंगे, तो बाकी सब कुछ अपने आप ही आ जाएगा.

जब लक्ष्मी आती हैं, तो वे अपने साथ रोमांच की भावना लेकर आती हैं. धन प्राप्त करने का विचार ही लोगों को रोमांचित कर देता है. वे अपने साथ सुंदरता और चांदनी जैसा सुखद प्रकाश लेकर आती हैं. लक्ष्मी जी को स्वच्छता अतिप्रिय है. जब आप एकदम साफ-सुथरे रहते हैं, तो लक्ष्मी जी आपसे प्रसन्न रहती हैं और आपके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है.

एकनिष्‍ठ भक्ति

माता लक्ष्मी को भक्तों की एकनिष्ठ भक्ति बहुत भाती है. इससे जुड़ी हुई एक कहानी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य सिर्फ आठ वर्ष के थे, तो वे भिक्षा मांगने के लिए एक बहुत गरीब महिला के घर गए. उसकी रसोई में भिक्षा देने के लिए एक आंवले के अलावा कुछ भी नहीं था. उन्‍होंने शंकराचार्य के भिक्षापात्र में वह एक आंवला भी डाल दिया. शंकराचार्य वह देखकर बहुत द्रवित हुए और वे माता लक्ष्मी से उस महिला के लिए प्रार्थना करने लगे. कहानी के अनुसार, माता लक्ष्मी शंकराचार्य की प्रार्थना से बहुत प्रसन्न हुईं और उस महिला के घर में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा होने लगी. आदि शंकराचार्य की यह रचना कनकधारा स्तोत्र के नाम से जानी जाती है.

जब आप धन का सम्मान करते हैं और आपके पास जितना धन है, उसके लिए कृतज्ञ रहते हैं, तो जीवन में और समृद्धि आती है. अक्सर हम लक्ष्मी को केवल धन या आभूषण समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है; वे एक दिव्य शक्ति हैं जो इस समस्त सृष्टि में व्याप्त हैं. उनका कोई रूप नहीं है, फिर भी वे सभी रूपों में हैं. वे बहुत करुणामयी और प्रेमपूर्ण हैं, जो हर जीव को आशीर्वाद प्रदान करती हैं.

माता लक्ष्‍मी के 8 स्‍वरूप

वेदों में बताया गया है कि लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा जाता है. सबसे पहला स्वरूप है- आदिलक्ष्मी; ‘हमारा मूल क्या है या हमारे जीवन का स्रोत कहाँ है?’ इस ज्ञान के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. लोगों की पूरी जिंदगी बीत जाती है, लेकिन न उन्हें जीवन का पता चलता है और न ही मृत्यु का. इन सभी विषयों पर विचार करने से हम जीवन को इसकी समग्रता में देख पाते हैं. आदिलक्ष्मी की कृपा से हमें अपने जन्म-जन्मान्तरों का ज्ञान होता है और जीवन में गहराई आती है.

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धनलक्ष्‍मी की कमी का प्रभाव

जब हमारे पास धन हो, तो सामाजिक कार्य संभव हो पाते हैं, लेकिन यदि धन की कमी हो, तो कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसा धनलक्ष्मी की कमी के कारण होता है. यदि धन उपलब्ध हो पर धान्यलक्ष्मी की कमी हो तो और अधिक समस्या हो जाती है. जैसे कभी-कभी कई देशों में आपातकाल की स्थिति में वहाँ के लोगों के पास धन तो होता है मगर आवश्यकता के अनुसार अनाज आदि की पूर्ति नहीं हो पाती. ऐसे में उन्हें दूसरे देशों से सहायता लेनी पड़ती है.

माता लक्ष्मी का एक और स्वरूप है- संतानलक्ष्मी. अगर किसी दंपत्ति को बच्चे नहीं हैं तो उन्हें दुःख होता है और कई बार बच्चों की उद्दंडता भी दुःख देती है. यह संतानलक्ष्मी की कमी के कारण होता है. सब कुछ होने के बाद भी यदि किसी कार्य में सफलता नहीं मिल रही है तो यह विजयलक्ष्मी की कमी है.

यदि जीवन में धैर्य नहीं है तो जीवन बड़ा मुश्किल हो जाता है. बहुत से लोग अपना पूरा जीवन डर-डर कर बिता देते हैं. यह धैर्यलक्ष्मी की कमी का संकेत है. ऐसे ही कभी-कभी जिस समय जो वस्तु चाहिए वह तब नहीं मिलती या फिर हम बड़े-बड़े सपने देखते हैं लेकिन भाग्य साथ नहीं देता. यह भाग्यलक्ष्मी की कमी है.

कौन हैं विद्यालक्ष्‍मी

देवी सरस्वती चट्टान पर बैठी हैं जो ज्ञान की स्थिरता का प्रतीक है. वे विद्यालक्ष्मी हैं. यदि केवल अध्ययन करना ही किसी का लक्ष्य है तो वह लक्ष्मी नहीं हैं, लेकिन अध्ययन करने के बाद जब जीवन में उस विद्या का उपयोग करते हैं तब वह विद्यालक्ष्मी कहलाती हैं.

जीवन में संतोष पाने के लिए भक्ति और ज्ञान दोनों की आवश्यकता होती है. ध्यान करने से ही हमें ज्ञान और भक्ति प्राप्त होती है. ध्यान के अभ्यास से हमारी बुद्धि तीक्ष्ण होती है और हमारी चैतन्य शक्ति विकसित होती है. जब हमारा हृदय कोमल होता है, तब वहाँ देवी भगवती का निवास होता है. इसलिए ध्यान करना महत्वपूर्ण है. माता लक्ष्मी को प्रसन्न करना हो, तो हमें जड़ता से दूर रहना चाहिए. साथ ही साधना, सेवा एवं सत्संग में लगे रहना चाहिए.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।

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