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नागौर का वो अनोखा मंदिर, जहां किसी भगवान को नहीं बैल को देवता मानते हैं किसान, मन्नतें मांगने उमड़ती है भीड़!

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Agency:Local18

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राजस्थान के नागौर जिले में पशुपालन सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था का हिस्सा भी है. यहां के किसानों का अपने पशुओं से गहरा जुड़ाव है, इतना कि वे मरने के बाद भी उन्हें भुला नहीं पाते. नागौर के एक गांव में किसान…और पढ़ें

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बीच चौराहे पर बना बैल का स्मारक 

दीपेंद्र कुमावत/नागौर– राजस्थान का नागौर जिला अपनी पशुपालन परंपरा के लिए संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है. यहां के ग्रामीण अपने पशुओं से सिर्फ भावनात्मक जुड़ाव ही नहीं रखते, बल्कि उनके सम्मान में मंदिर भी बनवाते हैं. नागौर के नावां क्षेत्र से सटे राजपुरा-देवली मार्ग पर स्थित एक गांव में बैल का मंदिर बना हुआ है. इस गांव के किसानों ने अपने प्रिय बैल की याद में गांव के मुख्य चौक पर उसकी मूर्ति स्थापित कर उसे देवता का दर्जा दे दिया है. अब ये स्थान गांव के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है, जहां प्रतिदिन किसान पूजा-अर्चना करने आते हैं.

अनोखी परंपरा का रहस्य
गांव के इस बैल मंदिर से जुड़ी मान्यताएं बेहद खास हैं. महाशिवरात्रि के दिन यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें किसान नारियल चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं. खास बात ये है कि ग्रामीणों का मानना है कि यदि बीमार पशुओं को इस मंदिर में चढ़ाए गए नारियल खिलाया जाए, तो वे चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो जाते हैं. इसी आस्था के चलते यहां दूर-दूर से किसान अपने पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य की कामना करने पहुंचते हैं.

पशुपालन की समृद्ध परंपरा
नागौर सिर्फ इस अनोखी परंपरा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने पशु मेलों और पशुपालन के समृद्ध इतिहास के लिए भी जाना जाता है. यहां हर साल रामदेव पशु मेला और तेजाजी पशु मेला आयोजित किए जाते हैं, जहां नागौरी नस्ल के बैलों की भारी खरीद-फरोख्त होती है. नागौर के बैल अपनी ताकत, तेज रफ्तार और सुंदरता के लिए विश्वभर में मशहूर हैं. यही वजह है कि ये बैल खेती और प्रतियोगिताओं में खासतौर पर उपयोग किए जाते हैं.

व्यापार और मनोरंजन का संगम
नागौर के पशु मेलों में सिर्फ बैल ही नहीं, बल्कि ऊंट, घोड़े और भेड़ों का भी व्यापार होता है. इन मेलों में मनोरंजन के लिए रस्साकशी, ऊंट नृत्य और घोड़ा नृत्य जैसी प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जो देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं. नागौर की यह परंपरा पशुपालन और संस्कृति के गहरे रिश्ते को दर्शाती है, जहां पशु सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह पूजे जाते हैं.

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नागौर का वो अनोखा मंदिर, जहां किसी भगवान को नहीं बैल को देवता मानते हैं किसान

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