Home Dharma नाच-गाना, संगीत इस्लाम में हराम… क्या कुफ्र के बीच निकाह होगा जायज?...

नाच-गाना, संगीत इस्लाम में हराम… क्या कुफ्र के बीच निकाह होगा जायज? जानें क्या कहता है शरीयत

0


Last Updated:

Rules And Conditions Of Nikah : निकाह इस्लाम में इबादत और पवित्र बंधन माना गया है, शरीयत के हिसाब से संगीत और नाच-गाना हराम बताया गया है, ऐसे में यह बहस तेज हो जाती है कि क्या ऐसे माहौल में पढ़ा गया निकाह जायज होगा या नहीं? जानिए इस्लामी कानून और उलेमा की इस मुद्दे पर क्या कहते हैं?

अलीगढ़. शादी इस्लाम में एक पाक और पवित्र रिश्ता है, जिसे इस्लाम में बहुत सादगी और शरीयत के उसूलों के तहत निभाने की हिदायत दी गई है. लेकिन अफसोस की बात है कि आजकल मुस्लिम समाज में शादियों का तरीका बदल गया है. डीजे, बैंड-बाजा और नाच-गाने जैसी रस्में आम हो गई हैं, जबकि इस्लाम में इन्हें नाजायज और हराम करार दिया गया है. इस्लाम खुशियों का दुश्मन नहीं है, बल्कि हमें हद से ज्यादा दिखावा और फिजूलखर्ची से बचने की ताकीद करता है. मौलाना चौधरी इब्राहिम हुसैन के मुताबिक, शादी एक मजबूत और मुकम्मल अमल है, लेकिन इसके साथ जुड़ी ये खुराफात इंसानी समाज और इस्लाम की तालीमात दोनों के खिलाफ हैं.

अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना चौधरी इब्राहिम हुसैन ने कहा कि शादी इस्लाम में एक पवित्र अमल है, जिसे बहुत सादगी और दरमियानी रास्ते के साथ अदा करने का हुक्म दिया गया है. लेकिन आजकल मुस्लिम समाज में शादियों में डीजे, बैंड-बाजा, नाच-गाना और तमाशे किए जाते हैं, जो इस्लाम में बिल्कुल नाजायज और हराम करार दिए गए हैं.

तमाशों का पड़ रहा बुरा प्रभाव
इब्राहिम हुसैन ने बताया कि इस्लाम हमें न तो जरूरत से ज्यादा खुश होने की इजाजत देता है और न ही बेवजह गमगीन होने की. बल्कि हमेशा एक दरमियानी रास्ता अपनाने की हिदायत दी गई है. बैंड-बाजा और नाच-गाने जैसी रस्में न सिर्फ गुनाह हैं, बल्कि इनके कई नुकसान भी हैं. जैसे कि जिन युवाओं या युवतियों की शादियां नहीं हो पा रही हैं, उनके दिलों पर ऐसे तमाशों का बुरा असर पड़ता है और उनके मानसिक हालात पर भी चोट पहुंचती है.

हर गुनाह की मिलेगी सजा
मौलाना ने कहा कि इस्लाम का साफ हुक्म है कि किसी को तकलीफ देने की इजाजत नहीं है. अगर लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके को छोड़कर नाफरमानी करते हैं और गुनाह की तरफ जाते हैं, तो इसकी सजा उन्हें आखिरत में मिलेगी. मौलाना साहब ने स्पष्ट किया कि शादी एक मजबूत सामाजिक और धार्मिक बंधन है, जो शौहर और बीवी के बीच गवाहों और वली के सामने एक कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर पूरा किया जाता है. इसलिए नाच-गाना और बैंड-बाजा बजाने से शादी के वजूद पर कोई फर्क नहीं पड़ता, शादी तो जायज होगी. लेकिन इन खुराफात और फिजूल रस्मों की इस्लाम में कोई इजाजत नहीं है और ये हराम हैं. इससे गुनाह मिलता है.

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homedharm

नाच-गाना, संगीत इस्लाम में हराम… क्या कुफ्र के बीच निकाह होगा जायज?

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version