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Mahabharata Places In Uttarakhand: उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ उन रहस्यमयी स्थलों के लिए भी जाना जाता है जो महाभारत काल से जुड़े हैं. देहरादून ज़िले में ऐसे पांच स्थल मौजूद हैं, जहां आज भी पांडवों के अज्ञातवास की कथाएं जीवंत हैं. लाखामंडल का लाक्षागृह से लेकर टपकेश्वर द्रोण गुफा तक, ये स्थान आस्था और पर्यटन का केंद्र बने हुए हैं.
चकराता की ओर जाने वाले रास्ते पर स्थित है मां काली का मंदिर. माना जाता है कि महाभारत काल में पांचों पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां पहुंचे थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार, अज्ञातवास (Mahabharata places in Uttarakhand) के समय इन इलाकों में पांचों भाई ठहरे थे, जिसका किसी को जरा-सा भी भान नहीं था. पहाड़ों के दुर्गम रास्तों के बीच उन्होंने इस मंदिर में अपनी कुलदेवी की अराधना की. मां काली ने प्रसन्न होकर उन्हें जीत का वरदान यहीं दिया था. ये स्थान आज आस्था का केंद्र है.
लाखामंडल में स्थित लाक्षागृह जो महाभारत काल में कौरवों के षडयंत्र का प्रमाण है. महाभारत की कथा के मुताबिक, कौरवों ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह (लाख से बना हुआ महल) बनवाया था. यह महल ज्वलनशील पदार्थ (Lakhmandal Lakshagriha history) लाख से बनाया गया था ताकि उसमें आग लगाकर पांडवों को जला दिया जाए. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को यहां खुदाई में कई प्राचीन मूर्तियां और अवशेष मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है.
पौराणिक काल में यह स्थान देवताओं की तपोस्थली थी. देवताओं ने यहां घोर तपस्या की और भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए. इसके बाद ऋषि-मुनियों का भी यहां आना शुरू हुआ. महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य (Tapkeshwar Drona cave temple) ने 12 साल तक यहां कठोर तप किया. सबसे ख़ास बात यह है कि पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य को यहां पर भगवान शिव ने धुनर्विद्या का ज्ञान दिया.
बैराट खाई को लेकर स्थानीय किवदंती है कि अज्ञातवास के दौरान जौनसार बावर के इस जगह पर पांडव भेष बदलकर रह रहे थे. उस समय यह जगह राजा विराट की नगरी थी. वर्तमान में कई पुराने खंडहर आज भी मौजूद है, जो हमें इतिहास की ओर झांकने को मजबूर करते हैं. गौरतलब है कि जौनसार बावर के कई इलाकों में पांडवों ने समय बिताया था. खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बसा ये क्षेत्र अब पर्यटन का भी केंद्र बन चुका है.
भद्रकाली देवी, पांडवों की कुल देवी थी. पहाड़ की तलहटी में बसा ये मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है. साधक संघ के संस्थापक महेशस्वरूप ब्रह्मचारी के मुताबिक किसी समय में (Mysterious temples of Uttarakhand) मंदिर के नीचे एक सुरंग थी, जिसका एक छोर लाखामंडल निकलता था. मान्यता है कि पांडव इस रास्ते के जरिए लाखामंडल पहुंचते थे, जहां लाखों शिवलिंग मौजूद हैं. भले ही मौजूदा समय में यह सुरंग बंद हो गई है, लेकिन आज भी लोग इस मंदिर को रहस्यमयी और बेहद चमत्कारी मानते हैं.
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