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भूखीमाता मंदिर: प्रसाद में चढ़ती मदिरा, नरबलि से होती माता खुश…जब राजा ने मीठा खिलाकर बदल दिया था देवी का मन!

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Bhukhimata Mandir Tradition: उज्जैन में भूखी माता मंदिर नाम से अलग तो है ही, इसकी कहानी भी हटकर है. पहले यहां नरबलि चढ़ाई जाती थी. अब भक्त मन्नत पूरी करने के लिए यहा एक खास चीज चढ़ाते है.

शुभम मरमट / उज्जैन. मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के किनारे भूखी माता का बेहद प्रसिद्ध मंदिर है. दरअसल, इस मंदिर मे दो देवियां विराजमान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यह दोनों बहने हैं. इनमें से एक को भूखी माता और दूसरी को धूमावती के नाम से जाना जाता है. खास बात यह है कि भक्तों द्वारा यहां मदिरा चढ़ाई जाती है. मान्यता है कि यहां प्राचीन समय में हर दिन एक युवक की नरबलि दी जाती थी. माना जाता है कि माता उसका रक्त पीती थीं, इसी कारण उन्हें भूखी माता कहा गया.

अभी भी इस मंदिर की मान्यता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि आज भी यहा बलि दी जाती है. साथ ही रोजाना माता को मदिरा (शराब) का भोग लगाया जाता है. श्रद्धालु स्वयं मदिरा लाकर चढ़ाते हैं और अगर कोई श्रद्धालु नहीं लाता, तो मंदिर की ओर से यह भोग चढ़ाया जाता है. यहां पर अब भी पशु बलि की परंपरा जारी है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बकरा या मुर्गा माता को चढ़ाते हैं.

पशुओं की दी जाती है बलि
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मंदिर में अब इंसान की बलि नहीं दी जाती है. पशुओं की बलि दी जाती है. ऐसे में ग्रामीण इलाकों के लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां आकर बलि प्रथा का निर्वाहन करते हैं. कई लोग पशु क्रूरता अधिनियम के तहत बलि नहीं देते और पशुओं का अंग-भंग कर मंदिर में ही छोड़ देते हैं.

राजा विक्रमादित्य से जुड़ गया इतिहास
मंदिर के पुजारी अशोक चौहान ने Bharat.one को बताया कि भूखी माता मंदिर काफ़ी प्राचीन है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माता पहले उज्जैन शहर के बीच मे निवास करती थी. और रोज एक राजा की बली मांगती थी. इसलिए रोजाना भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए रोजाना एक बालक को राजा बनाते थे. और माता को बली चढ़ाते थे. एक दिन राजा विक्रमादित्य वहा पहुँचे कि यहा की प्रजा इतनी कम क्यों है. तो लोगों नें बताया एक माता है यहां वह रोज एक नरबली मांगती है.

राजा विक्रमादित्य
उज्जैन सम्राट ने माता से नरबलि बंद करने का आग्रह किया और कहा कि यदि देवी उनकी बात नहीं मानेंगी, तो वे स्वयं उनकी बलि चढ़ेंगे. इसके बाद विक्रमादित्य ने माता के लिए विविध प्रकार के पकवान बनवाने का आदेश दिया. साथ ही एक मानव पुतले को मिठाइयों के साथ माता को भोग स्वरूप अर्पित किया. रात्रि में देवी ने जब उन पकवानों का स्वाद लिया, तो उन्हें वह मीठा और स्वादिष्ट लगा. भोजन से प्रसन्न होकर देवी ने विक्रमादित्य से कहा कि वह कोई वरदान मांगे.

राजा को ऐसा मिला वरदान की बढ़ गईं प्रजा
जब माता राजा विक्रमादित्य से ख़ुश हुईं तो राजा नें माता से कहा कि माता कृपा कर नदी के उस पार विराजमान हों और नरबलि की परंपरा सदा के लिए समाप्त करें. देवी ने यह वरदान स्वीकार कर लिया. इसके बाद से भूखी माता मंदिर में नरबलि की प्रथा बंद हो गई. हालांकि, पशु बलि की परंपरा आज भी जारी है. श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर बकरा या मुर्गा चढ़ाते हैं और माता को इसका भोग अर्पित किया जाता है.

पशु-पक्षी की बली नही चढ़ाए तो भी प्रसन्न होंगी माँ
मंदिर के पुजारी अशोक चौहान नें बताया कि जो भक्त माता को पशु-पक्षी की बली नही चढ़ा सकता वह यहां बाजरे व मक्के की रोटी के साथ एक प्याज़ माता को चढ़ाकर प्रसन्न कर सकता है. इतना ही नहीं अगर यह भी नही चढ़ाना चाहता तो माता को माल-पुआ चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है.

shweta singh

Shweta Singh, currently working with News18MPCG (Digital), has been crafting impactful stories in digital journalism for more than two years. From hyperlocal issues to politics, crime, astrology, and lifestyle,…और पढ़ें

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जब राजा ने मीठा खिलाकर बदल दिया था देवी का मन…बंद हो गई नरबलि की प्रथा!

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