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मां के लिए महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध, आज है मातामह श्राद्ध, जानें इसका महत्व और विधान

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Matamah Shraddha Tradition: राजस्थान में नवरात्रि स्थापना के साथ मातामह श्राद्ध की परंपरा निभाई जाती है. यह श्राद्ध नाना-नानी या मातामह-मातामही की स्मृति में किया जाता है और इसे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. संतान न होने पर नाती या दत्तक पुत्र भी यह तर्पण कर सकता है. मातृ पक्ष का श्राद्ध न करने वालों को मातृ दोष का भागी माना जाता है.

करौली. राजस्थान में नवरात्रि स्थापना के साथ ही अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध करने की परंपरा निभाई जाती है. स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला यह श्राद्ध पितृपक्ष खत्म होने के एक दिन बाद किया जाता है. इसे नाना-नानी अथवा मातामह-मातामही की स्मृति में किया जाता है. इस बार मातामह श्राद्ध आज है. ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास बताते हैं कि परंपरा के अनुसार संतान न होने पर नाती भी इस दिन तर्पण कर सकता है.

पुराने समय में लोग पिंडदान व श्राद्ध कर्म की निरंतरता के लिए दत्तक पुत्र गोद लेते थे. मान्यता है कि दत्तक पुत्र भी दो पीढ़ियों तक श्राद्ध कर सकता है. विशेष शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध केवल उसी महिला के पिता का निकाला जाता है, जिसका पति और पुत्र दोनों जीवित हों. यदि पति या पुत्र में से किसी एक का निधन हो चुका हो तो यह श्राद्ध नहीं किया जाता. माना जाता है कि मातामह श्राद्ध परिवार के सुख, शांति और सम्पन्नता का प्रतीक है.

मातृ पक्ष का श्राद्ध नहीं करने वाले मातृ दोष के बनते हैं भागी

धर्म परंपरा के अनुसार, एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में बेटी के घर का भोजन ग्रहण नहीं करता, इसे वर्जित माना गया है. किंतु मृत्यु के बाद नाती द्वारा किया गया तर्पण श्रेयकारी होता है. यदि दिवंगत के घर पुत्र न हो तो बेटी की संतान भी पिंडदान कर सकती है. डॉ. व्यास बताते हैं कि मातामह श्राद्ध को मातृ ऋण से मुक्ति का साधन माना गया है. इस दिन मां के कुल का श्राद्ध करने से नानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे परिवार में सुख, सौभाग्य और समृद्धि आती है. जो लोग मातृ पक्ष का श्राद्ध नहीं करते, वे मातृ दोष के भागी बनते हैं.

डॉ. व्यास बताते हैं कि श्राद्ध में महिलाओं की भागीदारी को लेकर अक्सर भ्रम रहता है. हालांकि धर्मग्रंथों, मनुस्मृति, गरुड़ पुराण और धर्मसिंधु में परिस्थितिवश महिलाओं को भी पिंडदान करने का अधिकार बताया गया है. विशेषकर पुत्र-पौत्र न होने की स्थिति में कन्या या धर्मपत्नी अंतिम संस्कार व श्राद्ध कर्म कर सकती हैं.

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दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से Bharat.one हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट…और पढ़ें

दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से Bharat.one हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट… और पढ़ें

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मातृ ऋण से पाना है मुक्ति? महिलाएं करें ये श्राद्ध कर्म, घर में आएगी खुशहाली

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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