Home Dharma माघ सप्तमी 2025: पुरी चंद्रभागा नदी स्नान मेला का महत्व और इतिहास

माघ सप्तमी 2025: पुरी चंद्रभागा नदी स्नान मेला का महत्व और इतिहास

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महाकुंभ 2025 प्रयागराज में हो रहा है, जबकि उड़ीसा के पुरी में चंद्रभागा नदी पर माघ सप्तमी पर विशाल मेला लगता है। चंद्रभागा नदी का पौराणिक महत्व है और इसे कोढ़ रोग ठीक करने वाली माना जाता है।

महाकुंभ की तरह इस नदी में भी स्नान बेहद फलदायी, माघ सप्तमी पर लगता है मेला

माघ सप्तमी पर इस नदी में स्नान करने का विशेष महत्व. (Canva)

हाइलाइट्स

  • पुरी में चंद्रभागा नदी पर माघ सप्तमी पर विशाल स्नान मेला लगता है.
  • उड़ीसा की चंद्रभागा नदी को कोढ़ रोग ठीक करने वाली माना जाता है.
  • चंद्रभागा नदी का पौराणिक महत्व है और इसका इतिहास सदियों पुराना है.

Puri Chandrabhaga River Bath: संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आयोजन हो रहा है. इस धार्मिक मेला के साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से करोड़ों की संख्या में लोग पहुंचे हैं. महाकुंभ के दौरान सभी शाही और अमृत स्नानों का अपना विशेष महत्व है. अब तक 2 अमृत स्नान हो चुके हैं और आज यानी बसंत पंचमी पर तीसरा स्नान चल रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, एक और जगह है जहां कुंभ की तरह लोगों की भीड़ जुटती है और पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. इस नदी के तट पर माघ सप्तमी पर विशाल मेला जुटता है. इस नदी का इतिहास और महत्व सदियों पुराना है. इस बार माघ सप्तमी कल यानी 04 फरवरी 2025 दिन मंगवार को पड़ रही है. अब सवाल है कि आखिर माघ सप्तमी पर स्नान के लिए कहां जुटता है मेला? कौन है वो नदी और किस राज्य में है स्थिति? आइए जानते हैं इस बारे में-

किस राज्य में महाकुंभ की तरह स्नान के लिए जुटती है भीड़

महाकुंभ की तरह उड़ीसा के पुरी में भी चंद्रभागा नदी में स्नान के लिए भीड़ जुटती है. यह स्नान मेला माघ सप्तमी के दिन लगता है. यहां लगने वाला मेला इतना विशाल होता है कि पुलिस की कई टुकड़ियों और अधिकारियों को तैनात किया जाता है. इस बार भी यहां लगने वाले मेले की सख्ती से निगरानी होगी. यह पवित्र अवसर ओडिशा के लोगों के लिए एक शुभ अवसर माना जाता है. इस दौरान लोग पवित्र स्नान करते हैं और भगवान से सुख-समृद्धि की भगवान त्रिवेणीश्वर, भगवान ऐसनेश्वर और भगवान दक्षिणेश्वर से प्रार्थना करते हैं. इस दौरान नजारा देखते बनता है.

कैसे बनी चंद्रभागा नदी?

पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्र नदी चंद्रमा की पुत्री और भागा नदी सूर्य का पुत्र माना जाता है. दोनों में बहुत ही प्रेम था, लेकिन किसी कारणवश दोनों के विवाह में अड़चनें आ गईं. इसके बावजूद अपने प्रेम की वजह से इन्होंने अपना मिलन नदी के रूप में एक होकर किया. इसलिए यहां एक तरफ से चंद्र नदी आती है तो दूसरी तरफ से भागा नदी और तांदी नामक स्थल पर दोनों मिलकर बड़ी नदी का रूप ले लेतीं हैं, जिसे चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है. चंबा जिले में पहुंचकर यह चिनाब का नाम ले लेती हैं.

चंद्रभागा नदी का रोचन इतिहास?

पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण की कई रानियां में एक थी जामवंत की पुत्री जामवंती. बहुमूल्य मणि हासिल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत में 28 दिनों तक युद्ध चला था और युद्ध के दौरान जब जामवंत श्रीकृष्ण के असली स्वरूप को पहचान गए, तो उन्होंने मणि समेत अपनी पुत्री जामवंती का हाथ भी उन्हें सौंप दिया. कृष्ण और जामवंती का पुत्र था, जिसका नाम था सांब. कहते हैं कि सांब इतना सुंदर और आकर्षक था कि कृष्ण की कई पटरानियां भी उसकी सुंदरता से मोहित थीं.

…जब श्रीकृष्ण ने पुत्र को दे डाला कोढ़ी होने का श्राप

सांब के रूप से प्रभावित होकर एक दिन श्रीकृष्ण की एक रानी ने सांब की पत्नी का रूप धारण कर उसे आलिंगन में भर लिया. लेकिन ऐसा करते हुए श्रीकृष्ण ने उन दोनों को देख लिया और उन्होंने क्रोधित होकर सांब को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया. बाद में महर्षि कटक ने सांब को कोढ़ से मुक्ति का उपाय बताते हुए सूर्य देव की उपासना करने को कहा. इसके बाद सांब ने चंद्रभागा नदी के किनारे मित्रवन में सूर्य देव का एक मंदिर बनवाया और 12 सालों तक सूर्य देव की कड़ी तपस्या की. कहा जाता है सूर्य देव ने सांब की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा. सांब ऐसा करके पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया. इसके बाद से ही मान्यता है कि चंद्रभागा नदी कोढ़ रोग को ठीक कर सकती है.

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