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Gardabh Mela: कौशांबी के कड़ा धाम में हर साल चैत्र मास की अष्टमी और नवमी को अनोखा गर्दभ मेला लगता है, जहां देशभर के व्यापारी घोड़ों, खच्चरों और गधों की खरीद-फरोख्त करते हैं.
गर्दभ मेला कौशाम्बी
हाइलाइट्स
- कौशांबी में हर साल अनोखा गर्दभ मेला लगता है.
- मेला चैत्र मास की अष्टमी और नवमी को होता है.
- व्यापारी घोड़ों, खच्चरों और गधों की खरीद-फरोख्त करते हैं.
कौशांबी: उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के कड़ा धाम में हर साल एक अनोखा गर्दभ मेला (गधा मेला) लगता है, जहां देशभर के व्यापारी घोड़ों, खच्चरों और गधों की खरीद-फरोख्त करने के लिए जुटते हैं. यह मेला मां शीतला देवी मंदिर के पास आयोजित किया जाता है, क्योंकि हिंदू धर्म में मां शीतला की सवारी गर्दभ मानी जाती है. इस धार्मिक और व्यापारिक मेले की सदियों पुरानी परंपरा है, जो आज भी जीवंत बनी हुई है.
यह मेला हर साल चैत्र मास की अष्टमी और नवमी को आयोजित किया जाता है और तीन दिन तक चलता है. इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों से व्यापारी आते हैं. वे सबसे पहले मां शीतला के दर्शन करते हैं और फिर घोड़ों व गधों की खरीद-फरोख्त में हिस्सा लेते हैं.
वैष्णो देवी यात्रा के लिए भी खरीदे जाते हैं घोड़े और गधे
कड़ा धाम में बिकने वाले घोड़े और गधे वैष्णो देवी यात्रा समेत दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और अन्य राज्यों में भेजे जाते हैं. यह मेला धार्मिक आस्था, परंपरा और व्यापार का अद्भुत संगम है, जहां सदियों से लोग जुटते आ रहे हैं.
मेले से जुड़ी अनोखी परंपराएं
यहां की एक खास परंपरा यह भी है कि मेला शुरू होने से एक हफ्ते पहले से ही व्यापारी पहुंचने लगते हैं और घोड़ों व गधों का लेन-देन शुरू हो जाता है. इस मेले को लेकर स्थानीय लोग भी बेहद उत्साहित रहते हैं और यह कौशांबी की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है.
मेले के कार्यकर्ता पवन कुमार निर्मल बताते हैं कि यह मेला मां शीतला के नाम पर आयोजित किया जाता है और इसे लेकर धोबी समाज सहित अन्य समुदायों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. यह मेला व्यापार और परंपरा को एक साथ संजोए हुए है, जिसे समाज आज भी पूरी श्रद्धा से निभा रहा है.