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Burhanpur Old Tradition: यहां 15 दिनों तक होती है मां अंबे की पूजा, मन्नत पूरी होने पर बच्चों को झूला झुलाने की परंपरा

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मोहन ढाकले/बुरहानपुर: मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में धार्मिक परंपराओं का एक गहरा महत्व है, और यह जिले के संस्कारों और रीतियों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. यहां एक विशेष समाज, जिसे गुजर साली सकल पंच समाज के नाम से जाना जाता है, पिछले 50 वर्षों से मां अंबा की आराधना करता आ रहा है. इस समाज द्वारा हर साल 15 दिन तक लगातार मां अंबा की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें मन्नतें पूरी होने पर बच्चों को कपड़े के झूले में झुलाने की विशेष परंपरा निभाई जाती है. यह धार्मिक अनुष्ठान नवरात्रि उत्सव से शुरू होता है और पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आकर मां अंबा के दर्शन और पूजा करते हैं.

मां अंबा की आराधना की विशेष परंपरा
गुजर साली सकल पंच समाज के सदस्य विष्णु सूर्यवंशी, दामोदर सूर्यवंशी और अशोक सूर्यवंशी के अनुसार, यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. इस पूजा में ज्योत जलाने और मां अंबा की स्तुति करने का विशेष महत्व होता है. वे बताते हैं कि उनके समाज की छह पीढ़ियां मां अंबा की आराधना करती आ रही हैं. समाज के पास आज भी 100 से 150 साल पुराने भजन लिखित रूप में उपलब्ध हैं, जिन्हें वे ढोलक की ताल पर गाते हैं और मां अंबा का गुणगान करते हैं.

ज्योति जलाने की परंपरा और मन्नत की प्रथा
समिति के अन्य सदस्य गुलाबचंद सूर्यवंशी के अनुसार, नवरात्रि के पहले दिन से मां अंबा की ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है, जो लगातार 15 दिन तक जलती रहती है. इस ज्योति का महत्व अत्यधिक है, और इसे पूनम यानी पूर्णिमा तक जलाया जाता है. इस पूजा के बाद मां अंबा का विसर्जन ताप्ती नदी में किया जाता है. यह पूजा विधि विधान से पूरी की जाती है, और इस दौरान 10 साल से लेकर 90 साल तक के लोग पूजा में सम्मिलित होते हैं. ये सभी पारंपरिक महाराष्ट्रीयन टोपी पहनकर मां का गुणगान करते हैं.

मन्नत पूरी होने पर झूला झुलाने की अनूठी प्रथा
इस पूजा का एक और विशेष पहलू है मन्नत मांगने की प्रथा. लोग अपने बच्चों के लिए मन्नत मांगने के लिए इस धार्मिक आयोजन में आते हैं. जब उनकी मन्नत पूरी होती है, तो वे अपने बच्चों को इसी पंडाल में कपड़े के झूले में झुलाते हैं. इस अनूठी परंपरा को देखने और इसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं. मन्नत पूरी होने पर बच्चों को झूले में झुलाने की यह प्रथा लोगों के विश्वास और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है.

परंपरा का आधुनिक स्वरूप
पहले मां अंबा की पूजा घर-घर जाकर की जाती थी, लेकिन अब समय के साथ इसमें बदलाव आया है. अब एक ही स्थान पर मां अंबा की पूजा की जाती है, जिससे अधिक से अधिक लोग एक साथ मिलकर इस आराधना में भाग ले सकें. हालांकि, परंपरा और रीति-रिवाजों में बदलाव आया है, लेकिन आस्था और भक्ति का स्तर वैसा ही बना हुआ है.

धार्मिक आयोजन का महत्व
बुरहानपुर का यह धार्मिक आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह समाज के लोगों के बीच आस्था और एकता का प्रतीक भी है. इस आयोजन में सामूहिक भजन-कीर्तन, माता की स्तुति और मन्नतों की परंपरा को जीवित रखते हुए, यह समाज हर साल मां अंबा की भक्ति और सेवा में समर्पित रहता है.

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