Home Dharma Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi | देवउठनी एकादशी व्रत कथा

Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi | देवउठनी एकादशी व्रत कथा

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Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और इसी के साथ सभी शुभ व मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुरू हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करके कथा सुनने व पढ़ने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि देवउठनी एकादशी व्रत कथा के पढ़ने व सुनने मात्र से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. यहां पढ़ें देवउठनी एकादशी व्रत कथा.

देवउठनी एकादशी व्रत कथा | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने कार्तिक कृष्ण एकादशी अर्थात रमा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना. अब आप कृपा करके मुझे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये. इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए.

भगवान श्रीकृष्ण बोले: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष मे तुलसी विवाह के दिन आने वाली इस एकादशी को विष्णु प्रबोधिनी एकादशी, देव-प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान, देव उथव एकादशी, देवउठनी एकादशी, कार्तिक शुक्ल एकादशी तथा प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है, इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो.

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे. प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था. एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला: महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें. तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं. किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा.

उस व्यक्ति ने उस समय हाँ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा: महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा. मैं भूखा ही मर जाऊंगा, मुझे अन्न दे दो.

राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को तैयार नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए. वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा. जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा: आओ भगवान! भोजन तैयार है.

उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे. भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया.

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए. उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया. राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं. इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता.

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह बोला: मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं. मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए.

राजा की बात सुनकर वह बोला: महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें. राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए. अंत में उसने कहा: हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा.

लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा. प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे. खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए. यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. इससे राजा को ज्ञान मिला. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ.

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