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Tervi ke fayde : किसी की मृत्यु के बाद तेरहवीं सैकड़ों साल से मनाई जाती आई है. इस दिन खासतौर पर ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान देना और पूजा करवाना एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर ब्राह्मणों को ही क्यों खिलाया जाता है, ऐसा न करने पर क्या होगा. आइये जानते हैं.
जौनपुर. हिंदू धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कारों में “तेरहवीं” का विशेष महत्त्व होता है. ये दिन मृत आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से जुड़ा होता है. तेरहवीं के दिन खासतौर पर ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान देना और पूजा करवाना एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर ब्राह्मणों को ही क्यों खिलाया जाता है? इस रहस्य पर प्रकाश डालते हुए जौनपुर के अध्यात्मविद्या के जानकार राम प्रीति मिश्रा Bharat.one से बताते हैं कि इसके पीछे बहुत गहरी धार्मिक और वैज्ञानिक भावना छिपी है. राम प्रीति मिश्रा के अनुसार, तेरहवीं संस्कार का अर्थ है — शरीर और आत्मा का अंतिम बंधन तोड़ना. मृत्यु के बाद 13 दिन तक आत्मा अपने स्थूल शरीर और परिवार के आसपास मंडराती रहती है. इस अवधि में किए जाने वाले संस्कार, जैसे स्नान, तर्पण, हवन और भोजन, आत्मा को अगले लोक की यात्रा के लिए तैयार करते हैं.
आत्मा को तृप्ति
राम प्रीति मिश्रा बताते हैं कि 13वें दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने का कारण यह माना गया है कि ब्राह्मण ज्ञान, वेद और धर्म के प्रतिनिधि होते हैं. उन्हें भोजन कराने से व्यक्ति के कर्मों का फल आत्मा तक पहुंचता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब परिवारजन प्रेमपूर्वक भोजन परोसते हैं, तो आत्मा को तृप्ति का अनुभव होता है. ब्राह्मणों के माध्यम से यह “पुण्य” आत्मा तक पहुंचता है. इसे “पिंडदान” और “श्राद्ध भोज” कहा जाता है. इस दिन शुद्ध सत्त्विक भोजन बनाया जाता है — जैसे खीर, पूरी, दाल, चावल और लौकी जैसी सरल चीजें. इसका उद्देश्य होता है कि भोजन में सात्त्विकता रहे, ताकि आत्मा को शांति और संतोष मिले.
पुराने समय में ये केवल…
राम प्रीति मिश्रा बताते हैं कि तेरहवीं में केवल भोजन ही नहीं, बल्कि दान भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है. व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को कपड़ा, दक्षिणा और पात्र दान करता है. यह माना जाता है कि ऐसा करने से मृत आत्मा के पाप कटते हैं और परिवार को भी दीर्घायु व समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. पुराने समय में तेरहवीं केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आध्यात्मिक समागम होता था. इससे परिवार, रिश्तेदार और समाज सभी एक साथ बैठकर मृत व्यक्ति के जीवन को याद करते थे और उसके अच्छे कर्मों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते थे. आज के समय में भले ही लोग इसे एक औपचारिकता समझने लगे हैं, लेकिन इसके पीछे की भावना बेहद गहरी है — यह आत्मा के उद्धार और परिवार के संस्कारों की निरंतरता का प्रतीक है.
अचंभे की बात
राम प्रीति मिश्रा बताते हैं कि तेरहवीं सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने का माध्यम है. यह हमें याद दिलाती है कि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अमर है. ब्राह्मण को भोजन कराने का अर्थ है — उस अमर आत्मा को श्रद्धा से विदा देना. यह अचंभे की बात है कि सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी उतनी ही वैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से सार्थक है, जितनी हजारों साल पहले थी.
Priyanshu has more than 10 years of experience in journalism. Before News 18 (Network 18 Group), he had worked with Rajsthan Patrika and Amar Ujala. He has Studied Journalism from Indian Institute of Mass Commu…और पढ़ें
Priyanshu has more than 10 years of experience in journalism. Before News 18 (Network 18 Group), he had worked with Rajsthan Patrika and Amar Ujala. He has Studied Journalism from Indian Institute of Mass Commu… और पढ़ें
