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diwali festival kamakshi amman temple | kamakshi amman temple kanchipuram history | why anyone can not take darshan of maa Kamakshi | दिवाली पर मां कामाक्षी की निकलेगी पालकी यात्रा, मंदिर में हर कोई नहीं कर सकता दर्शन, जानें कारण

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Diwali Kamakshi Temple: इस साल दिवाली 20 अक्टूबर सोमवार को है. दिवाली पर माता लक्ष्मी के मंदिर में पूजा की जाती है. देशभर में अलग-अलग मंदिर हैं और सभी की अपनी मान्यता, अलग परंपरा और पौराणिक कथाएं मौजूद हैं. हर मंदिर में पूजन विधि और परंपरा अलग होती है. तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित मंदिर में दिवाली के दिन विशेष परंपरा को निभाया जाता है, जहां हर कोई मां कामाक्षी के दर्शन नहीं कर सकता है.

दिवाली पर ऐसे लोग नहीं कर सकते दर्शन

कांचीपुरम में श्री कांची कामाक्षी अम्मन मंदिर है, जहां दीपावली के दिन मंदिर की अनोखी छटा देखने को मिलती है. मंदिर को फूलों से सजाकर, मां को स्वर्ण गहनों से सुशोभित करते दक्षिण भारतीय संगीत से मां की आराधना की जाती है. दीपावली के दिन मंदिर में एक खास परंपरा निभाई जाती है.

माना जाता है कि जिस किसी के भी माता-पिता की मृत्यु हो जाती है, या दोनों में से किसी एक की भी मृत्यु हो जाती है, तो वो मंदिर में मां कामाक्षी के दर्शन के लिए नहीं आ सकता है. मृत्यु के एक साल बाद मंदिर में दर्शन करने की परंपरा है, इसलिए मां कामाक्षी खुद घर-घर जाकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं.

मां कामाक्षी की पालकी यात्रा

दिवाली पर उत्सव के दिन मां कामाक्षी की पालकी यात्रा निकाली जाती है और मां के दर्शन के लिए भक्त अपने घरों से निकलकर बाहर खड़े हो जाते हैं और मां से आशीर्वाद लेते हैं.

एक ही प्रतिमा में दो देवी का वास

श्री कांची कामाक्षी अम्मन शक्तिपीठ मंदिर है, जहां एक ही प्रतिमा में दो माताएं वास करती हैं. माना जाता है कि कामाक्षी मां की एक आंख में लक्ष्मी और दूसरी में सरस्वती विराजमान होती हैं और एक ही प्रतिमा में मां दो रूपों में भक्तों को आशीर्वाद देती हैं.

सिर्फ सिंदूर ही करते हैं अर्पित

भक्त मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं और मनोकामना की पूर्ति के लिए मां के चरणों में सिंदूर अर्पित करते हैं. मां पर सिर्फ सिंदूर ही अर्पित किया जाता है.

मां कामाक्षी की कथा

कहा जाता है कि इस मंदिर में मां लक्ष्मी ने मां कामाक्षी की पूजा की थी. मां लक्ष्मी को कुरूप होने का श्राप भगवान विष्णु ने दिया था. मां लक्ष्मी को उनके कुरूप रूप से मां कामाक्षी ने छुटकारा दिलवाया था. इसके बाद मां लक्ष्मी भी मां कामाक्षी के साथ ही मंदिर में विराजमान हो गईं.

विवाहित पंडित ही करते हैं पूजा

भक्त मां कामाक्षी को माथे से लेकर चरणों तक सिंदूर अर्पित करते हैं. श्री कांची कामाक्षी अम्मन मंदिर में मां कामाक्षी आठ साल की बालिका के रूप में विराजमान हैं, जहां फिर विवाहित पंडित ही उनकी पूजा कर सकते हैं. इसे मां का अब तक का सबसे पवित्र रूप माना गया है.

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