गाजीपुर: यूपी के गाजीपुर में कामाख्या देवी मंदिर बहुत ही फेमस है. यह मंदिर गाजीपुर के गहमर में है. इसका निर्माण सीकर वंश के राजा ने किया था. यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति और सृष्टि की देवी मानी जाती हैं. इस मंदिर का इतिहास 10वीं-12वीं शताब्दी का है और यह भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है. मंदिर की अनोखी संरचना और यहां की धार्मिक गतिविधियां इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाती हैं.
जानें मंदिर का इतिहास
कामाख्या देवी की महत्ता कामाख्या देवी मंदिर विशेष रूप से अपनी पूजा विधियों के लिए मशहूर है. यहां पर मां कामाख्या की पूजा में बलिदान और विशेष अनुष्ठान शामिल होते हैं. मान्यता है कि इस स्थान पर देवी ने स्वयं प्रकट होकर शक्ति और प्रेम का संचार किया. यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मां कामाख्या से प्रार्थना करते हैं, जिससे यह स्थान विशेष रूप से पवित्र माना जाता है.
सांस्कृतिक एकता चैत्र और शारदीय नवरात्र के दौरान यहां मुस्लिम राजपूत भी मां का आशीर्वाद लेने आते हैं. यह दर्शाता है कि कामाख्या देवी मंदिर न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि अन्य समुदायों के लिए भी एक पवित्र स्थान है. इस गांव को फौजियों का गांव कहा जाता है. इस गांव में आज तक कोई भी जवान देश के लिए शहीद नहीं हुआ है.
गहमर की विशेषता और मान्यता
गहमर, एशिया का सबसे बड़ा गांव है, जहां हर घर में एक या एक से अधिक सैनिक होते हैं. यह क्षेत्र भारतीय सशस्त्र बलों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है. एक दिलचस्प बात यह है कि आजादी के बाद से यहां कोई सैनिक शहीद नहीं हुआ है. स्थानीय लोग मानते हैं कि यह सब मां कामाख्या की कृपा से संभव हुआ है. यहां के सैनिक युद्ध में जाते समय देवी का नाम लेकर जाते हैं, चाहे वह भारत-चीन युद्ध हो या भारत-पाकिस्तान युद्ध.
जानें पौराणिक मान्यताएं
लोगों का मानना है कि यहां जमदग्नि, विश्वामित्र और गाधि तनय जैसे ऋषि-मुनियों का सत्संग हुआ करता था. विश्वामित्र ने यहां एक महायज्ञ भी किया था. पौराणिक मान्यता के अनुसार जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ताड़का का वध करने गए थे, तो वह इसी मार्ग से होकर गए थे. इसके अलावा सिकरवार राजकुल के पितामह खाबड़ जी ने कामगिरि पर्वत पर जाकर मां कामाख्या की घोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप मां ने सिकरवार वंश की रक्षा का वरदान दिया था.
वहीं, 15वीं सदी में खानवा के युद्ध में राणा सांगा की बाबर से पराजय के बाद सिकरवंशीय राजपूतों की एक कुरी बाबा धामदेव के नेतृत्व में गहमर के सकराडीह पर जा बसी. यहां पर उनके पुरोहित गंग उपाध्याय ने मां कामाख्या की मूर्ति की विधिवत स्थापना की, जो सिकरवंशीय चौरासी गांवों के राजपूतों की कुल देवी मानी जाती हैं.
भारतीय संस्कृति का है प्रतीक
वहीं, कामाख्या देवी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है. यहां की मान्यताएं अलौकिकता और सीकर वंश का योगदान इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं. गहमर के लोग इस मंदिर को अपनी सुरक्षा और शक्ति का स्रोत मानते हैं, जो उनकी जीवटता और साहस का प्रतीक है.
FIRST PUBLISHED : October 15, 2024, 12:28 IST
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