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Lingeshwari Mata Mandir Tradition: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में लिंगेश्वरी माता का एक ऐसा मंदिर है जो साल में केवल एक बार ही खुलता है और शाम होते ही बंद भी हो जाता है. आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर का रहस्य.
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के आलोर गांव में पहाड़ों के बीच स्थित माता लिंगेश्वरी मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और गहरी आस्था के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर के कपाट सालभर बंद रहते हैं और केवल भाद्रपद नवमी के बाद आने वाले पहले बुधवार को एक दिन के लिए ही खुलते हैं. इसी वजह से इसे लोग ‘एक दिन का मंदिर’ भी कहते हैं.
3 सितंबर को मंदिर के कपाट खुलने जा रहे हैं. इस खास दिन का इंतजार भक्त पूरे साल करते हैं. हजारों श्रद्धालु छत्तीसगढ़ समेत पड़ोसी राज्यों से भी यहां पहुंचते हैं. मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र में भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं.
लिंगेश्वरी माता मंदिर खास तौर पर संतान प्राप्ति की आस्था से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि यहां आने वाले दंपति को प्रसाद के रूप में खीरा दिया जाता है. इसे पति-पत्नी मिलकर नाखून से दो भागों में बांटकर ग्रहण करते हैं. ऐसा करने से संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है.
माता लिंगेश्वरी की गुफा को बंद करते समय द्वार पर रेत बिछाई जाती है. अगले साल जब गुफा खोली जाती है तो उस रेत पर बने पदचिह्नों को देखकर पुजारी भविष्यवाणी करते हैं. कमल के निशान समृद्धि का संकेत माने जाते हैं, जबकि बाघ या बिल्ली के निशान विपत्ति और भय का प्रतीक माने जाते हैं. इसी परंपरा के आधार पर पूरे क्षेत्र का वार्षिक कैलेंडर तय होता है.
कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक शिकारी खरगोश का पीछा करते-करते इसी गुफा तक पहुंचा. खरगोश वहां अचानक गायब हो गया और उसी जगह पत्थर के रूप में लिंग प्रकट हुआ. बाद में माता ने स्वप्न में आदेश दिया कि साल में केवल एक दिन मेरी पूजा की जाएगी. तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई और आज तक यह मान्यता कायम है.
भारी भीड़ और संवेदनशील इलाके को देखते हुए मंदिर परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. हर ओर पुलिसकर्मी तैनात हैं. सूर्योदय के साथ मंदिर के द्वार खुलेंगे और सूर्यास्त से पहले ही बंद हो जाएंगे. इसके बाद अगले साल तक भक्तों को पुनः दर्शन का इंतजार करना होगा.