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Mahabharat Katha: अर्जुन का वो बेटा, ज‍िसने सौतेली मां के उकसाने पर, प‍िता को उतारा था मौत के घाट!

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Mahabharat Katha: सनातन धर्म में महाभारत की कथा ऐसी है, ज‍िसकी प्रासंग‍िकता आज भी उतनी ही है. महाभारत के सबसे शक्‍तिशाली और युद्ध कौशल में न‍िपुण क‍िरदारों में से एक हैं अर्जुन, ज‍िसके जैसा धनुर्धर कोई हुआ ही नहीं. अर्जुन अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारे. लेकिन एक मौका ऐसा पड़ा जब अर्जुन को अपने ही पुत्र के हाथों मृत्‍यु म‍िली. असल में अर्जुन की चार पत्‍न‍ियां थीं. द्रौपदी, च‍ित्रांगदा, उलूपी और सुभद्रा. द्रौपदी को मछली की आंख भेदकर स्‍वयंवर में जीतने की कहानी तो हम सब को पता है. लेकिन आज अर्जुन की पत्‍नी च‍ित्रांगदा और उसके बेटे के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.

मण‍िपुर की राजकुमारी पर मोह‍ित हुए अर्जुन
चित्रांगदा मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री थी. जब वनवासी अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो च‍ित्रांगदा के युद्ध कौशल और रूप पर मुग्ध हो गये. चित्रांगदा, राजा चित्रवाहन की एकमात्र उत्तराधिकारी थीं. उन्होंने नरेश से उसकी कन्या मांगी. राजा चित्रवाहन ने अर्जुन से चित्रांगदा का विवाह करना इस शर्त पर स्वीकार कर लिया कि उसका पुत्र चित्रवाहन के पास ही रहेगा क्योंकि पूर्व युग में उसके पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए थे. उन्होंने पुत्र की कामना से तपस्या की थी तो शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्त करने का वरदान देते हुए यह भी कहा था कि हर पीढ़ी में एक ही संतान हुआ करेगी. इसलि‍ए चित्रवाहन की संतान वह कन्या ही थी. अर्जुन ने शर्त स्वीकार करके उससे विवाह कर लिया.

चित्रांगदा के पुत्र का नाम ‘बभ्रुवाहन’ रखा गया. पुत्र-जन्म के उपरांत उसके पालन का भार चित्रांगदा पर छोड़ अर्जुन ने विदा ली. चलने से पूर्व अर्जुन ने कहा कि कालांतर में युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करेंगे, तभी चित्रांगदा अपने पिता के साथ इन्द्रप्रस्थ आ जाय. वहां अर्जुन के सभी संबंधियों से मिलने का सुयोग मिल जायेगा.

अर्जुन और च‍ित्रांगदा के बीच प्रेम हो गया. (photo-leonardo.ai)

अर्जुन अपने ही बेटे के हाथों मारा गया
अश्वमेध यज्ञ के ल‍िए अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो बभ्रुवाहन ने उनका स्वागत किया. मणिपुर नरेश बभ्रुवाहन ने जब सुना कि मेरे पिता आए हैं, तब वह गणमान्य नागरिकों के साथ बहुत-सा धन साथ में लेकर बड़ी विनय के साथ उनके दर्शन के लिए नगर सीमा पर पहुंचा. मणिपुर नरेश को इस प्रकार आया देख अर्जुन ने धर्म का आश्रय लेकर उसका आदर नहीं किया अर्जुन क्रुद्ध हो उठे. उन्होंने यह क्षत्रियोचित नहीं माना और अपने पुत्र को युद्ध के लिए ललकारा. उलूपी (अर्जुन की दूसरी पत्नी) ने भी अपने सौतेले पुत्र बभ्रुवाहन को युद्ध के लिए प्रेरित किया. युद्ध में बभ्रुवाहन बेहोश हो गया और अर्जुन अपने ही बेटे के हाथों मारा गया.

उलूपी ने संजीवनी मणि से क‍िया जीव‍ित
अर्जुन के मारे जाने का समाचार सुनकर युद्ध भूमि में अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा पहुंचकर विलाप करने लगी. वह उलूपी से कहने लगी कि तुम्हारी ही आज्ञा से मेरे पुत्र बभ्रुवाहन ने अपने पिता से युद्ध किया. चित्रांगदा उलूपी पर बहुत रुष्ट हुई. उलूपी ने संजीवनी मणि से अर्जुन को पुनर्जीवित किया तथा बताया कि वह एक बार गंगा तट पर गयी थी. वहां वसु नामक देवता गणों का गंगा से वार्तालाप हुआ था और उन्होंने यह शाप दिया था कि गंगापुत्र को शिखंडी की आड़ से मारने के कारण अर्जुन भी अपने पुत्र के हाथों भूमिसात होंगे. तभी अर्जुन पापमुक्त हो पायेंगे. इसी कारण से उलूपी ने भी बभ्रुवाहन को लड़ने के लिए प्रेरित किया था.

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