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Navratri 2025 tips : ये मंदिर महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजित है. चैत्र नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है. भक्त माता को लाल चुनरी चढ़ाकर अपनी हर मनोकामना पूरी करते हैं.
माता चंडिका मंदिर
हाइलाइट्स
- उत्तराखंड के बागेश्वर में माता चंडिका का मंदिर आस्था का केंद्र है.
- चैत्र नवरात्र में यहां पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
- लाल चुनरी चढ़ाने से नौकरी और करियर में उन्नति मिलती है.
बागेश्वर. पुराणों में बागेश्वर को धर्मनगरी कहा गया है. यहां बाबा बागनाथ मंदिर जैसे कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जो अपने आप में विशेष शक्ति और आस्था रखते हैं. ठीक ऐसा ही नगर की भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका का मंदिर भी है. मंदिर में चंडिका माता मां काली के रूप में विराजमान हैं. माता चंडिका को बागेश्वर नगर की नगरदेवी के रूप में पूजा जाता है. महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात माता चंडिका को चंपावत से लाकर बागेश्वर में स्थापित किया गया था. मंदिर में सालभर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. खासतौर पर चैत्र नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए लंबी कतारें लगती हैं. पंचमी और अष्टमी को भक्त दर्शन के लिए कतार में अपनी बारी का इंतजार करते हैं.
चढ़ाएं ये चीज
माता चंडिका मंदिर के पुजारी पंडित कैलाश चंद्र पांडेय Bharat.one से कहते हैं कि चैत्र नवरात्र में यहां पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूरी होती है. यहां बागेश्वर के अलावा अन्य जिलों और राज्यों के लोग नौकरी पाने, विवाह होने, घर की सुख-शांति और करियर में उन्नति जैसी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. माता चंडिका चमत्कारी माता हैं. वे अपने भक्तों को कभी भी अकेला नहीं छोड़ती है. चैत्र नवरात्रि के दौरान जो भी भक्त मंदिर में सच्चे दिल से पूजा-अर्चना करता है, निश्चित ही वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता है. अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए आप माता को एक लाल रंग की चुनरी चढ़ा सकते हैं. अपनी स्वेच्छा और पुजारी की सहमति से फल-फूल, भेंट और घंटी चढ़ा सकते हैं.
क्या कहते हैं शिलालेख
माता चंडिका को मूल रूप से चंपावत का माना जाता है. साल 1698 से 1701 में चंद राजाओं के शासनकाल में उनके कुलपुरोहित रहे सिमल्टा (चंपावत) गांव के पंडित श्रीराम पांडेय चंडिका देवी और गोल्ज्यू को लेकर बागेश्वर आए थे. ताम्र पत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार, भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर (थान) बनाया गया, तब से क्षेत्रवासियों ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात चंडिका मंदिर की पूजा नगरदेवी के रूप में शुरू कर दी. सर्वसम्मति से साल 1988 में चंडिका मंदिर कमेटी का गठन किया गया. मंदिर कमेटी के गठन के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया. इस दौरान मंदिर को और भी भव्य-आकर्षित बनाया गया.