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Navratri Special: कन्या पूजन के साथ जरूरी है बालक की पूजा, क्या कहता है शास्त्र? उज्जैन के आचार्य नें बताया रहस्य

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Navratri Kanya Pujan 2025 : शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है, जो कि 2 अक्टूबर को समाप्त होगा. नवरात्रि के दौरान अष्टमी और नवमी तिथि पर लोग कन्या पूजन कराते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि नवरात्रि कन्या पूजन मे बालक क्यों बैठता है. 

Navratri Kanya Pujan. हिन्दू धर्म में नवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. वैसे तो यह पर्व साल में चार बार मनाया जाता है. दो बार गुप्त नवरात्रि के रूप में और दो बार चैत्र नवरात्रि और शरदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष विधान है. 9 दिन व्रत रहने के बाद लोग कन्या पूजन करते हैं. कन्या पूजन के समय कन्याओं के साथ एक बालक को भी बैठाया जाता है.

उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज के अनुसार, जैसे मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं, वैसे ही बटुक भैरव उस शक्ति के रक्षक माने जाते हैं. देवी के हर शक्तिपीठ के पास भैरव नाथ की उपस्थिति इसी कारण मानी जाती है. इसलिए कन्या पूजन में बटुक भैरव का पूजन आवश्यक होता है, जिससे देवी की कृपा के साथ-साथ उसकी रक्षा भी सुनिश्चित होती है.

कौन हैं बटुक भैरव 
भगवान भैरव शिव के रोद्र रूप मे पूजे जाते है. उन्हीं रूपों में से एक बटुक भैरव, भगवान शिव के भैरव रूप का सौम्य अवतार माने जाते हैं. जब एक बालक को कन्याओं के साथ पूजा जाता है, तो वह केवल एक सांकेतिक उपस्थिति नहीं, बल्कि धार्मिक पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए भी बटुक को कन्या के साथ पूजा जाता है.

कन्या के साथ बिठाते हैं लांगुरा 
नवरात्रि के 9 दिन माता के अलग-अलग स्वरूप की पूजा और व्रत करते हैं. उन पर माता की विशेष कृपा बनी रहती है. मां अपने सभी भक्तों के सब दुख दूर कर देती हैं. कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का व्रत और अनुष्ठान संपूर्ण नहीं माना जाता है. अष्टमी अथवा नवमी के दिन लोग अपने घर कन्याओं को बुलाकर पूजन करते हैं. इस पूजन के दौरान कन्याओं के साथ एक बालक को बिठाया जाता है, जिसे लांगुरा कहते हैं.

लांगुरा के बिना कन्या पूजन अधूरी 
पौराणिक कथा के अनुसार, आपद नाम का राक्षस लोगों को काफी परेशान करता था. तभी शिवजी ने एक उपाय निकाला, शिवजी ने कहा, सभी देवी देवता अपनी अपनी शक्तियों से एक बालक की उत्पत्ति करें. जिससे आपद राक्षस का वध हो सके. सभी देवी देवताओं ने मिलकर यही किया और बालक का नाम बटुक भैरव रखा गया. कन्या पूजन के वक्त जिस लंगूर को बैठाकर पूजन किया जाता है. यह वही बटुक भैरव का रूप माने जाते हैं. देवी स्वरूप कन्याओं के साथ इनका भी पूजन किया जाता है. बिना बटुक भैरव के पूजन के कन्या पूजन और नवरात्रि का पर्व संपन्न नहीं होता है.

कन्या पूजन में बटुक ना मिले तो क्या करें?
अगर आपको कन्या पूजन के लिए कोई बटुक न मिले तो फिर आप एक थाली भैरव बाबा के नाम की निकाल दीजिए. फिर इस भोग को कुत्ते को खिला दीजिए. आपको बता दें कि कुत्ता भैरवनाथ की सवारी माना जाता है.

Dallu Slathia

Dallu Slathia is a seasoned digital journalist with over 7 years of experience, currently leading editorial efforts across Madhya Pradesh and Chhattisgarh. She specializes in crafting compelling stories across …और पढ़ें

Dallu Slathia is a seasoned digital journalist with over 7 years of experience, currently leading editorial efforts across Madhya Pradesh and Chhattisgarh. She specializes in crafting compelling stories across … और पढ़ें

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Navratri Special: कन्या पूजन के साथ जरूरी बालक की पूजा, क्या कहता है शास्त्र?

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