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पितृ पक्ष में पितरों की याद में तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. गाय, कौवा और कुत्ते को भोजन देने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है. यह कर्म अमावस्या को भी किया जा सकता है.
पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो चुका है. इस दौरान पितरों को तर्पण और श्राद्ध द्वारा याद किया जाता है. लोग उनके प्रिय भोजन बनाकर और पशु-पक्षियों को खिलाकर पितरों की आत्मा को तृप्त करने का प्रयास करते हैं.
पितृ पक्ष में भोजन का महत्व प्रतीकात्मक है. इसका मतलब है कि जो खाना हम पितरों के नाम पर पशु-पक्षियों को देते हैं वह उनके पास पहुंचता है. इससे पितरों की आत्मा को सुख और संतोष मिलता है.
महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य के अनुसार पितृ पक्ष में तीन जीवों को खास महत्व दिया जाता है. ये हैं गाय, कौआ और कुत्ता. इन्हें भोजन देने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है.
गाय को सबसे पवित्र माना जाता है. पितृ पक्ष में गुड़ या चारा गाय को अर्पित करने से पितरों की कृपा बनी रहती है. यह भोजन पितरों तक पहुँचने का सबसे सुरक्षित और शुभ तरीका माना जाता है.
कौवे को भी विशेष मान्यता दी जाती है. मान्यता है कि कौवे के द्वारा भोजन यमराज तक पहुँचता है. खीर, पूरी या अन्य भोजन छत पर रखकर कौवे को अर्पित करना श्राद्ध का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
कुत्ते को पितृ पक्ष में खाना देना बहुत शुभ माना जाता है. कुत्ता यमराज का दूत और काल भैरव की सवारी है. इसे भोजन देने से पितरों का मार्ग सुरक्षित होता है और अकाल मृत्यु के दोष से मुक्ति मिलती है.
गाय, कौवा और कुत्ते को भोजन देने से पितरों की कृपा बनी रहती है. घर में सुख-शांति का वातावरण होता है और परिवार पर पितरों की आशीर्वाद बनी रहती है. यदि तिथि न पता हो तो अमावस्या को यह कर्म किया जा सकता है.