गुमला : झारखंड राज्य चारों ओर से हरे भरे पेड़ पौधों जंगल पहाड़ नदियों झरनों, ऐतिहासिक स्थल, धार्मिक स्थल व पर्यटक स्थलों से भरा पड़ा है. इसी में से एक प्रमुख धार्मिक स्थल सिमडेगा का राम रेखा धाम है. यह प्रभु श्री राम, देवी सीता व भाई लक्ष्मण से जुड़ा एक पवित्र धार्मिक स्थल है. यहां लगने वाले मेला को राजकीय मेला का दर्जा मिला है. यह धार्मिक के अलावा प्राकृतिक रूप से भी काफी सौंदर्य है. यहां चारों ओर हरे भरे जंगल, पेड़ पौधे के बीच विशाल चट्टान हैं. वहीं, माना जाता है कि चट्टान पर प्रभु श्रीराम ने रेखाएं खींचे थे. इसलिए इसे राम रेखा कहा जाता है.
वहीं, बता दें कि त्रेता युग में प्रभु श्री राम, देवी सीता व भाई लक्ष्मण अपने वनवास काल के दौरान आए थे और 4 माह यहां बिताए थे. यहां आज भी उनके आकर रहने का साक्ष्य के रूप में राम कुंड, लक्ष्मण कुंड, अग्नि कुंड, चरण पादुका, सीता चूल्हा और गुप्त गंगा आदि मौजूद है. उसी में से एक सीता चूल्हा है. जहां सीता मां खाना बनाती थी. वह चूल्हा आज भी मौजूद है.
रामरेखा धाम में है सीता चूल्हा
रामरेखा धाम के प्रचार प्रसार प्रमुख दीपकरण दास ने Bharat.one को बताया कि सिमडेगा के पाकर टांड़ स्थित रामरेखा धाम में त्रेता युग में प्रभु श्री राम अपने भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ में यहां आए थे. वह अपने 14 वर्ष के वनवास काल का 4 महीना यहां भी बताए थे. वे यहां गुफा में रहते थे और जब उन्हें भोजन बनाने की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने एक चूल्हा का निर्माण किया. जहां माता सीता खाना बनाती थी. इसलिए उस चूल्हा का नाम सीता चूल्हा पड़ गया.
पैर और घुटने के हैं निशान
उस समय इस चूल्हे में खाना बनता था, तो आसपास के भी भाई बंधु खाते थे. उस युग का सीता चूल्हा आज भी यहां साक्ष्य के रूप में मौजूद है. वहीं, जब यहां सीता चूल्हा जलता था, तो कुछ दूर पहाड़ के ऊपर से धुंआ निकलता था. उसे अग्निकुंड कहा जाता है. जहां पास चूल्हा में सीता मां खाना बनाती थी. उसके पैर ,घुटने के निशान अभी भी मौजूद हैं. जिसे हम लोग स्मृति चिन्ह के रूप में पूजा पाठ करते हैं.
इस तरह से यहां यहां विभिन्न प्रकार के साक्ष्य हैं. वहीं, रामरेखा धाम को राजकीय मेला का भी दर्जा मिल गया है. बता दें कि यहां आदिवासी से लेकर सभी धर्म के लोग आते हैं. राजकीय मेला घोषित होने के बाद अब ये भव्य रूप लेने जा रहा है. यहां विकास कार्य तेजी से हो रहा है.
4 माह यहां बिताए थे भगवान राम
वहीं, पुजारी अग्नू बाबा ने Bharat.one को बताया कि त्रेता युग में प्रभु श्रीराम, भाई लक्ष्मण व सीता माता अपने वनवास काल के दौरान जंगल में घूमते हुए रामरेखा धाम पहुंचे थे. यहां विशाल चट्टान के नीचे गुफा में 4 माह बिताए थे. जब उन्हें भूख लगी तो खाना बनाने की आवश्यकता पड़ी. ऐसे में प्रभु श्रीराम ने यहां सीता चूल्हा बनाया. फिर माता सीता बोली की भोजन बनाने के लिए पानी कहां से लाएं, तो प्रभु श्रीराम ने अपने धनुष के बाण से पत्थर को चीर डाला. जहां से गंगा प्रकट हुई. तब फिर मां सीता यहां खाना बनाती थी. यहां एक अद्भुत शंख भी है, जिससे राम-राम की ध्वनि निकलती है.
