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Roza Rules in Hindi: इस्लाम में कब दी गई है रोजा तोड़ने की इजाजत, किन बातों का रखना होता है ध्यान? खुद मौलाना ने किया खुलासा  

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Roza Rules in Hindi: रोजा रखते हुए कई नियमों का पालन किया जाता है. लेकिन कुछ परिस्थियों में रोजा तोड़ने की भी इजाजत दी जाती है. जानें इस बारे में.

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इस्लाम में रोजा किस वजह से तोड़ने की इजाजत है, जाने क्या कहते हैं मौलाना

हाइलाइट्स

  • बीमारी या सफर में रोजा तोड़ने की इजाजत है.
  • गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को छूट है.
  • जान बचाने के लिए दवा खाने पर रोजा टूट सकता है.

Roza Rules in Hindi: इस्लाम धर्म में रोजा को एक अहम इबादत माना गया है, जिसे हर मुसलमान पर फर्ज करार दिया गया है. रमजान के महीने में सुबह सहरी से लेकर शाम इफ्तार तक भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत की जाती है. यह इबादत इंसान को सब्र, आत्मसंयम और खुदा के करीब लाने का जरिया है. लेकिन इस्लाम की एक बड़ी खासियत यह है कि यह धर्म इंसान के हालात और उसकी मजबूरियों को भी समझता है. इसलिए कुछ परिस्थितियों में खुदा ने रोजा तोड़ने की इजाजत दी है. ताकि इंसान पर ज़ुल्म न हो और उसकी सेहत और जान की हिफाजत की जा सके.

कब है रोजा तोड़ने की इजाजत?
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन ने बताया की इस्लाम में साफ तौर पर बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति बीमार हो और रोजा रखने से उसकी तबीयत और बिगड़ने का खतरा हो, तो वह रोजा तोड़ सकता है. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति सफर पर हो और रोजा रखना उसके लिए मुश्किल हो जाए, तो उसे भी रोजा तोड़ने की इजाजत दी गई है. गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं और मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान महिलाओं को भी रोजा रखने से छूट दी गई है.

मुस्लिम धर्मगुरु इफराहीम हुसैन ने बताया कि इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति की जान पर बन आई है और उसे जान बचाने के लिए दवा खानी है तो ऐसे मे उससे उसका रोजा टूट जाता है, तो यह भी एक जायज वजह मानी गई है. इस्लाम में इंसान की जान बचाना एक बहुत बड़ी नेकी मानी गई है, और ऐसे नेक काम के लिए खुदा ने रोजा तोड़ने की इजाजत दी है. लेकिन यह भी जरूरी है कि जो व्यक्ति मजबूरी में रोजा तोड़ता है तो वह बाद में उसकी कजा अदा करे यानी छूटे हुए रोजे की भरपाई करे.

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क्या बोले मौलाना?
मौलाना इफराहीम हुसैन ने कहा कि इस्लाम के इस फैसले से यह साबित होता है कि यह धर्म इंसानियत का सबसे बड़ा परोपकार है. खुदा ने कभी इंसान पर ऐसा बोझ नहीं डाला, जिसे वह उठाने के काबिल न हो. रोजे जैसी अहम इबादत में भी खुदा ने इंसान के हालात और मजबूरियों को समझते हुए नरमी बरती है. इसका मकसद यही है कि इंसान अपनी जान और सेहत को बचाते हुए भी खुदा के हुक्म की तामील करे और रोजे की अहमियत को समझें.

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इस्लाम में कब दी गई है रोजा तोड़ने की इजाजत, किन बातों का रखना होता है ध्यान?

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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