Home Dharma Shardiya Navratri 2024: किस स्थान पर कैसे बने देवी सती के शक्तिपीठ,...

Shardiya Navratri 2024: किस स्थान पर कैसे बने देवी सती के शक्तिपीठ, अस्तित्व में आने की क्या है वजह, यहां जानें

0


Devi sati shaktipeeth: देवी के प्रसिद्ध और पावन मंदिरों में 52 शक्तिपीठ शामिल हैं. वैसे तो 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं, लेकिन तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं. इन शक्तिपीठ के अस्तित्व में आने के पीछे एक खास वजह मिलती है. हिंदू धर्म में देवी सती के 51 शक्तिपीठ का बेहद महत्त्व है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सभी शक्ति पीठ बनने के पीछे की वजह क्या है और माता सती के 51 कहां-कहां स्थित हैं? ऐसे में आइए आपको इस लेख में पौराणिक कथा के अनुसार देवी के शक्ति पीठों के बनने की वजह के बारे में बताते हैं. साथ ही यह भी बताते हैं कि ये 51 शक्तिपीठ कहां-कहां हैं.

देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ, देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है. देवी पुराण में जो 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं, उनमें से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं. भारत में कुल 42 शक्तिपीठ हैं. जबकि बांग्लादेश में 4, नेपाल में 2 और श्रीलंका-पाकिस्तान और तिब्बत में 1-1 शक्तिपीठ हैं.

माता सती के 51 शक्तिपीठ के नाम

देवी बाहुला- एक प्रतीक माता सती का बायां हाथ अजेय नदी के पास पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में गिरा था, जहां देवी बाहुला के रूप में पूजी जाती हैं.

मंगल चंद्रिका- माता की दाईं कलाई पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में उज्जनि में गिरी थी. माता का मंगल चंद्रिका रूप यहां है.

भ्रामरी देवी- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता का बायां पैर पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी में गिरा था, जहां मां सती का भ्रामरी रूप पूजा जाता है.

जुगाड्या- माता सती का दाएं पैर का अगूंठा पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में गिरा था. माता सती यहां जुगाड़ी रूप में विराजमान है.

माता कालिका- मां का बाएं पैर का अगूंठा पश्चिम बंगाल के कोलकाता के कालीघाट में गिर गया था. यहां माता को कालिका कहा जाता है.

महिषमर्दिनी- मां सती का भ्रूण भी पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में गिरा था. इसलिए माता को यहां महिषमर्दिनी भी कहा जाता है.

देवगर्भ- पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिले में माता सती की अस्थियां गिरी होती हैं. यहां देवी को देवगर्भ कहा जाता है.

यह भी पढ़ें : Neech Bhang Raj Yog: बहुत पॉवरफुल होता ये राजयोग, जातक को शासन-सत्ता तक दिलाता, आपकी कुंडली में तो नहीं

देवी कपालिनी- मां सती की बायीं एड़ी पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में गिरी थी. यहां माता का कपालिनी रूप पूजा जाता है.

फुल्लरा- पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में मां सती का ओष्ठ भी मिल गया है. इस जगह माता सती की पूजा फुल्लरा रूप में की जाती है.

अवंति- मध्य प्रदेश के उज्जयिनी में क्षिप्रा नदी तट पर माता सती का ऊपरी होंठ गिरा. यहां वे अवंति कहलाती हैं.

नंदिनी- बीरभूम, पश्चिम बंगाल में माता सती का नंदिनी रूप पूजा जाता है. यह भी कहा जाता है कि यहीं देवी सती के गले का हार गिरा था.

देवी कुमारी- माता सती का दायां कंधा पश्चिम बंगाल में रत्नाकर नदी के पास गिरा था, जहां वे देवी कुमारी कहलातीहैं.

देवी उमा- मां सती का बायां (कंधा) स्कंध भारत-नेपाल बॉर्डर पर गिरा था. जहां माता उमा विराजमान हैं.

कालिका देवी- पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में माता सती के पैर की हड्डी गिरी थी. यहां उन्हें कालिका देवी के नाम से पूजा जाता है.

विमला जी- बांग्लादेश के मुर्शिदाबाद जिले में माता सती की पूजा विमला नाम से की जाती है, जहां उनके माथे का मुकुट गिरा था.

मां भवानी- मां की दायीं भुजा बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिले में चंद्रनाथ पर्वत के शिखर पर गिरी थी. यहां मां सती को भवानी कहते हैं.

सुनंदा- माना जाता है कि माता सती की नाक बांग्लादेश के बरिसल में गिरी थी. यहां माता का सुनहरा रूप है.

देवोत्सव- मां सती की बायीं जांघ बांग्लादेश के जयंतिया परगना में गिरी थी, जिसे देवी जयंती कहा जाता है.

महालक्ष्मी देवी– बांग्लादेश के जैनपुर गांव में मां सती के पार्थिव शरीर को शिव जी उठाकर ले जा रहे थे, तब माता सती का गला यहां गिरा था. यहां देवी की पूजा महालक्ष्मी के रूप में की जाती है.

योगेश्वरी- माना जाता है कि मां सती के हाथ और पैर बांग्लादेश के खुलना जिले में गिरे थे. यहां उन्हें योगेश्वरी कहा जाता है.

अर्पण- माता सती की बाएं पैर की पायल बांग्लादेश के भवानीपुर गांव में गिरी थी. जहां उनकी अर्पण रूप में पूजा होती है.

इन्द्रक्षी- श्रीलंका में माता के इंद्रक्षी रूप की पूजा की जाती है क्योंकि इस स्थान पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी है.

मां ललिता- उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में मां सती की हाथ की अंगुली प्रयाग संगम में गिरी थी. यहां माता सती को ललिता रूप में पूजा जाता है.

यह भी पढ़ें: घर में रखीं ये खराब चीजें जिंदगी कर सकतीं तबाह, फौरन करें ये उपाय, वरना…

मणकर्णी– उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मां को विशालाक्षी या मणकर्णी नाम से पूजा जाता है क्योंकि वहां उनकी कान की मणि गिरी थी.

देवी शिवानी- एक पौराणिक कहानी कहती है कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट रामगिरी में मां सती का दायां वक्ष गिर गया था. यहां देवी शिवानी का नाम है.

चूड़ामणि- एक खनिज उत्तर प्रदेश के वृंदावन में मां सती के केश की चूड़ामणि मिली. जहां माता सती को उमा कहा जाता है.

श्रावणि- तमिलनाडु के भद्रकाली मंदिर में मां सती की पीठ गिरी. यहां उन्हें श्रावणी कहा जाता है.

सावित्री- एक देवी हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मां सती की एड़ी गिरी. इस जगह माता का सावित्री रूप विराजमान है.

देवी गायत्री- राजस्थान के अजमेर में मां सती को गायत्री पर्वत पर पूजा जाता है, जहां उनकी कलाई गिरी थी.

मां काली- मध्य प्रदेश के अमरकंटक में मां सती का बायां नितंब गिरा था. यहां काली पूजा जाती है.

देवी नर्मदा- मध्य प्रदेश के अमरकंटक में मां सती का दायां नितंब नर्मदा नदी तट पर गिरा था. यहां देवी को नर्मदा कहा जाता है.

देवी नारायणी- पौराणिक कथाओं के अनुसार, तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवंतपुरम मार्ग पर मां सती की ऊपरी दाड़ गिरी थी. यह देवी का नारायणी रूप है.

वाराही- उत्तर प्रदेश के गोंडा में स्थित इस मंदिर में माता सती की निचली दाढ़ गिरी थी. यहां देवी की वाराही रूप में पूजा जाता है.

श्री सुंदरी- आंध्र प्रदेश के कुरनूल श्रीशैलम में मां सती का दाएं पैर की पायल गिरी होती है. जहां वे श्री सुंदरी नाम से पूजी जाती हैं.

चंद्रभागा- भगवान शिव ने माता सती का पार्थिव शरीर उठाते समय सोमनाथ मंदिर के पास गुजरात के जूनागढ़ जिले में मां का अमाशय गिरा था. यहां देवी को चंद्रभागा कहा जाता है.

भ्रामरी देवी- एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां सती की ठोड़ी गोदावरी घाटी में महाराष्ट्र के नासिक में गिरी थी. माता यहां भ्रामरी कहलाती हैं.

राकिनी देवी- आंध्र प्रदेश के कोटिलिंग्शेवर मंदिर में मां सती का गाल गिरा था. जहां राकिनी माता की पूजा की जाती है

देवी अंबि- मां सती के बायें पैर की उंगली राजस्थान के भरतपुर में गिरी थी. यहां पर माता सती को अंबि नाम से पूजा जाता है.

महाशिरा- ऐसा माना जाता है कि नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के पास गुजयेश्वरी मंदिर में मां सती के दोनों घुटनें गिरे हैं. इस स्थान पर मां का महाशिरा रूप की पूजा की जाती है.

गण्डकी चंडी- मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल के पोखरा में गण्डकी नदी के तट पर है. माना जाता है कि मां सती का मस्तक इस जगह गिरा था. यहां मां को गंडकी चंडी की तरह पूजा जाता है.

जयदुर्गा- कर्नाटक में स्थित इस मंदिर में मां सती के दोनों कान गिरे थे. यह स्थान जयदुर्गा कहलाता है.

कोट्टरी- हिंगलाज माता का शक्तिपीठ लारी तहलीस, बलूचिस्तान, पाकिस्तान में है. माना जाता है कि इस जगह मां सती का सिर गिरा था. यहां मां को कोट्टरी कहते हैं.

महिष मर्दिनी- माता सती का नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में है. इस स्थान पर माना जाता है कि यहां माता सती की आखें गिरी थीं. इस जगह पर माता की महिष मर्दिनी के रूप में पूजा की जाती है.

देवी अंबिका- हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मां सती की जीभ गिरी थी. यहां माता सती का अंबिका रूप पूजा जाता है.

देवी महामाया- मां सती का गला कश्मीर के पहलगाम स्थित अमरनाथ में गिरा था. यहां देवी को महामाया कहा जाता है.

यह भी पढ़ें: घर के साउथ-ईस्ट में रखी ये चीजें आपकी जिंदगी में ला देंगी भूचाल! वास्तु अनुसार जानें क्या करें उपाय

त्रिपुरमालिनी- माता सती का दायां वक्ष पंजाब के जालंधर में गिरा था. यहां देवी को त्रिपुरमालिनी के रूप में पूजा जाता है.

माता अंबाजी- देवी सती का ह्रदय गुजरात के अंबाजी मंदिर में गिरा था. इस स्थान पर माता को अंबाजी कहते हैं.

मां दाक्षायनी- तिब्बत के पास कैलाश पर्वत पर माता सती का दायां हाथ गिरा था. यहां माता सती को दाक्षायनी के रूप में पूजा जाता है.

देवी विमला- माता सती की नाभि उड़ीसा में भुवनेश्वर में गिरी थी. आज मां सती को विमला रूप में पूजा जाता है.

त्रिपुर सुंदरी- एक महिला मान्यता है कि माता सती का दायां पैर त्रिपुरा के माताबढ़ी शिखर उदयपुर में गिरा था. यहीं माता को त्रिपुर सुंदरी का नाम मिलता है.

कामाख्या देवी- असम के गुवाहाटी के कामगिरी में माता सती की योनि गिरी है. यहां कामाख्या देवी की पूजा करने के लिए कामाख्या मंदिर बनाया गया है.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version