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Ghazipur News: गाजीपुर के गहमर गांव में स्थित मां कामाख्या का मंदिर सिर्फ पूजा का स्थल नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है.
सिकरवार वंश के पितामह खाबड़ जी ने यहां कठोर तपस्या की थी, जिससे माता कामाख्या प्रसन्न हुईं और इस वंश की रक्षा का वरदान दिया. इसलिए आज भी इस गांव के लोग मां कामाख्या को अपनी कुलदेवी मानते हैं.
मंदिर की स्थापना 10वीं-12वीं शताब्दी में मानी जाती है, और 1841 में इसे स्थानीय स्वर्णकार तेजमन ने पुनर्निर्मित कराया. आज भी मंदिर परिसर में मां कामाख्या और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं. नवरात्रि के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लोग मानते हैं कि जोड़ा नारियल चढ़ाने से संतान की इच्छा पूरी होती है, और माता के दरबार से कोई भक्त खाली नहीं लौटता.गहमर का यह मंदिर सिर्फ हिंदू समुदाय के लिए नहीं, बल्कि यहां के मुस्लिम राजपूत भी माता का आशीर्वाद लेने आते हैं, जो सांस्कृतिक एकता का उदाहरण प्रस्तुत करता है.
गहमर गांव को एशिया का सबसे बड़ा गांव कहा जाता है, और लगभग हर घर से कोई न कोई सैनिक सेना में है. स्थानीय मान्यता है कि मां कामाख्या की कृपा से आज तक यहां का कोई सैनिक शहीद नहीं हुआ. इसलिए नवरात्रि के अवसर पर लोग माता से सुरक्षा और शक्ति की कामना करते हैं.
इस नवरात्रि 2025 में, गहमर का कामाख्या मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास, परंपरा और सामूहिक सुरक्षा के प्रतीक के रूप में भी उजागर हो रहा है. हर भक्त यहां आकर अनुभव करता है कि मंदिर में मौजूद आस्था और शक्ति आज भी लोगों के जीवन में बदलाव लाती है.