Relation After Death: मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सच है, जिसे हर कोई किसी न किसी रूप में महसूस करता है, लेकिन इसके साथ ही हमारे मन में यह सवाल भी उठता है कि क्या मृत्यु के बाद सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं? हम अपने माता-पिता, संतान, पति-पत्नी, भाई-बहन और मित्रों से जुड़ते हैं, और इन रिश्तों के बिना जीवन अधूरा लगता है, लेकिन जब सांसारिक शरीर छोड़कर आत्मा आगे की यात्रा पर निकलती है, तो क्या यह सभी बंधन भी समाप्त हो जाते हैं? ऐसे ही सवाल का जवाब खोजने के लिए एक भक्त ने प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज से पूछा कि मृत्यु के बाद हमारे रिश्तों का क्या होता है. प्रेमानंद जी ने इसे बड़े ही सरल और स्पष्ट शब्दों में समझाया. उन्होंने बताया कि यह सच है कि मृत्यु के बाद भौतिक संसार से जुड़े रिश्ते खत्म हो जाते हैं, लेकिन आत्मा की यात्रा अलग होती है, जो अपने कर्मों और संस्कारों के साथ आगे बढ़ती है. इस यात्रा में कभी-कभी वही कर्म और संस्कार हमें उन आत्माओं से जोड़ सकते हैं जिनके साथ हमारी गहरी मानसिक और भावनात्मक संबंध रही हो.
मृत्यु के बाद रिश्तों की वास्तविकता
जब एक भक्त ने प्रेमानंद जी से पूछा कि क्या मृत्यु के बाद सारे रिश्ते टूट जाते हैं, तो उन्होंने सरलता से उत्तर दिया कि हां, यह सत्य है. उन्होंने समझाया कि जैसे हम गहरी नींद में चले जाते हैं और उस समय हमारे आसपास की चीजों की कोई याद नहीं रहती, वैसे ही मृत्यु के बाद भी व्यक्ति का शरीर और उससे जुड़े सभी भौतिक रिश्ते पीछे छूट जाते हैं.
स्वप्न और नींद के उदाहरण के माध्यम से उन्होंने बताया कि मृत शरीर में आत्मा की मौजूदगी समाप्त हो जाती है और भौतिक संबंधों का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता. मृत्यु के बाद न बैंक बैलेंस, न घर, न रिश्तेदार कुछ भी साथ नहीं रहता. यही कारण है कि मृत्यु के समय सभी भौतिक बंधन टूट जाते हैं और व्यक्ति केवल आत्मा के रूप में अकेले यात्रा पर निकलता है.
रिश्तों का आधार शरीर
हमारे जन्म के साथ ही माता-पिता से रिश्ता जुड़ता है, फिर जीवन के सफर में मित्र, भाई-बहन, पति-पत्नी और संतान जैसे संबंध बनते हैं. प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार ये सभी रिश्ते सिर्फ शरीर और जीवन की परिस्थितियों के आधार पर बने होते हैं. जब शरीर समाप्त होता है, तो इन संबंधों का आधार भी खत्म हो जाता है.
इसलिए मृत्यु के बाद भले ही हमारे मन में प्रेम और यादें जीवित रहें, लेकिन वास्तविक रूप में भौतिक संबंध समाप्त हो जाते हैं. केवल आत्मा की यात्रा शेष रहती है, जो शाश्वत और स्वतंत्र होती है.
आत्मा का शाश्वत स्वरूप
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कहा है:
“न जायते म्रियते वा कदाचित्, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः”
इसका मतलब है कि आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और न कभी मरती है. आत्मा अविनाशी है. शरीर बदलता है, लेकिन आत्मा के साथ कोई बंधन नहीं टूटता. मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं.
प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्म और संस्कारों को साथ लेकर यात्रा करती है. कई बार यही कर्म उसे उन आत्माओं से फिर से जोड़ देते हैं जिनसे उसका गहरा संबंध रहा हो, लेकिन भौतिक रूप से कोई रिश्ता, चाहे वह माता-पिता का हो या जीवनसाथी का, मृत्यु के बाद अस्तित्व में नहीं रहता.
मृत्यु के बाद रिश्तों का सार
मृत्यु भौतिक दुनिया के सभी रिश्तों को समाप्त कर देती है. जो प्रेम और संबंध हम अनुभव करते हैं, वे शरीर और जीवन के आधार पर जुड़े होते हैं. आत्मा शाश्वत है, उसका कोई अंत नहीं, लेकिन भौतिक बंधनों का जीवन मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है. प्रेमानंद जी महाराज के शब्दों में, मृत्यु हमें अकेला करती है और केवल आत्मा का सफर जारी रहता है. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
